कविता

सावरिया गिरधारी (गीत १)

सावरिया गिरधारी ,हे माधव बनवारी

सावरिया गिरधारी ,हे माधव बनवारी

 

अंखिया मूंदे बैठी रही मैं तुम तो निकट ना आये

योग, ज्ञान, तप और उपासन सारे व्रत अपनाये

यमुना तट तक दौड़ पड़ी कभी मधुवन निधिवन भटकी

कालिंदी से मैं गोवर्धन, गोकुल वृन्दावन अटकी

मन को बाँधा खूब मगर फिर तुम तक ही वो जाये

और तुम निष्ठुर निपट ओ छलिया रहे मंद मुस्काये

खेल तुम्हारे जाने हैं मैंने, अब ना दूंगी गारी

सावरिया गिरधारी, हे माधव बनवारी

मन वीणा के तारों को तुम रहे गिरिधर उलझाते

कभी विरह की वेदना देते कभी रहे प्रीत निभाते

नित्य ताकती राह तुम्हारी पर तुम प्रभु ना आते

जाने कहाँ छिपे बैठे बस बंसी मधुर बजाते

एक मुरली ही मेरी आस है तुमको पा लेने की

संग प्रीत के गीत तुम्ही संग मिलकर गा लेने की

कंठ लगाओ मुझे हे गोविन्द, कृष्ण प्रेमावतारी

सावरिया गिरधारी,हे माधव बनवारी

_______सौरभ कुमार दुबे

सौरभ कुमार दुबे

सह सम्पादक- जय विजय!!! मैं, स्वयं का परिचय कैसे दूँ? संसार में स्वयं को जान लेना ही जीवन की सबसे बड़ी क्रांति है, किन्तु भौतिक जगत में मुझे सौरभ कुमार दुबे के नाम से जाना जाता है, कवितायें लिखता हूँ, बचपन की खट्टी मीठी यादों के साथ शब्दों का सफ़र शुरू हुआ जो अबतक निरंतर जारी है, भावना के आँचल में संवेदना की ठंडी हवाओं के बीच शब्दों के पंखों को समेटे से कविता के घोसले में रहना मेरे लिए स्वार्गिक आनंद है, जय विजय पत्रिका वह घरौंदा है जिसने मुझ जैसे चूजे को एक आयाम दिया, लोगों से जुड़ने का, जीवन को और गहराई से समझने का, न केवल साहित्य बल्कि जीवन के हर पहलु पर अपार कोष है जय विजय पत्रिका! मैं एल एल बी का छात्र हूँ, वक्ता हूँ, वाद विवाद प्रतियोगिताओं में स्वयम को परख चुका हूँ, राजनीति विज्ञान की भी पढाई कर रहा हूँ, इसके अतिरिक्त योग पर शोध कर एक "सरल योग दिनचर्या" ई बुक का विमोचन करवा चुका हूँ, साथ ही साथ मेरा ई बुक कविता संग्रह "कांपते अक्षर" भी वर्ष २०१३ में आ चुका है! इसके अतिरिक्त एक शून्य हूँ, शून्य के ही ध्यान में लगा हुआ, रमा हुआ और जीवन के अनुभवों को शब्दों में समेटने का साहस करता मैं... सौरभ कुमार!

One thought on “सावरिया गिरधारी (गीत १)

  • विजय कुमार सिंघल

    जय श्री कृष्ण ! अच्छा गीत !!

Comments are closed.