सावरिया गिरधारी (गीत १)
सावरिया गिरधारी ,हे माधव बनवारी
सावरिया गिरधारी ,हे माधव बनवारी
अंखिया मूंदे बैठी रही मैं तुम तो निकट ना आये
योग, ज्ञान, तप और उपासन सारे व्रत अपनाये
यमुना तट तक दौड़ पड़ी कभी मधुवन निधिवन भटकी
कालिंदी से मैं गोवर्धन, गोकुल वृन्दावन अटकी
मन को बाँधा खूब मगर फिर तुम तक ही वो जाये
और तुम निष्ठुर निपट ओ छलिया रहे मंद मुस्काये
खेल तुम्हारे जाने हैं मैंने, अब ना दूंगी गारी
सावरिया गिरधारी, हे माधव बनवारी
मन वीणा के तारों को तुम रहे गिरिधर उलझाते
कभी विरह की वेदना देते कभी रहे प्रीत निभाते
नित्य ताकती राह तुम्हारी पर तुम प्रभु ना आते
जाने कहाँ छिपे बैठे बस बंसी मधुर बजाते
एक मुरली ही मेरी आस है तुमको पा लेने की
संग प्रीत के गीत तुम्ही संग मिलकर गा लेने की
कंठ लगाओ मुझे हे गोविन्द, कृष्ण प्रेमावतारी
सावरिया गिरधारी,हे माधव बनवारी
_______सौरभ कुमार दुबे
जय श्री कृष्ण ! अच्छा गीत !!