हार नहीं मानो तुम….
हार नहीँ मानो तुम
हार नहीँ मानो तुम।
टूटे मन से खडा कोई नहीँ होता,
यूँ तो अंबर से बडा कोई नहीँ होता,
छोटे छोटे पंछी तिनके जमा किया करते हैँ,
घरौँदे पेडोँ पर बना लिया करते हैँ,
मेघ भी इकट्ठे होकर बरसाते सावन है,
एक राम के साहस से डरते दस रावन है,
बाधाओँ के आगे बढने की ठानो तुम,
हार नही मानोँ तुम।
हार नहीँ मानोँ तुम।।
छोटी सी नौका भी माल खूब ढोती है,
सिँधु की लहर धरती के पाँव धोती है,
आकाश भी झुकता है पर्वत के आने पर,
वन बाग खिलखिलाते हैँ कोयल के गाने पर,
मन से मन को जोडो जीवन को पहचानो तुम,
हार नहीँ मानो तुम।
हार नहीँ मानो तुम।।
____सौरभ कुमार दुबे
बेजोड़ लेखन …. बधाई उम्दा सृजन के लिए
प्रेरक कविता !