रंग गाडा …
सपनों के लग गये पर
रंग गाडा आया …
बसंत का
फागुन बन निखर
चुम्बन लेने लौट आया मधुप
काँप रहें कलियों के
अधखुले अधर
पवन की मुट्ठियों में हैं परागकण
हल्दी की तरह जो गये
उपवन में बिखर
पंखुरियों के कपोल पर
दौड़ आई हैं लाज की लाली
निहार कर मुस्कुराता चेहरा
काँस की तरह
धूप गयी हैं चमक
कटने लगा हैं पुरातन
अगड़ाई ले रहा नूतन यौवन
अभी तो प्यार का मौसम हुआ हैं आरंभ
तब क्या होगा
जब हथेलियों पर रचेगा मेहँदी का रंग
साँसे महकेंगी
पद चाप सुन
ह्रदय की धड़कने जायेंगी तब सिहर
सपनों के लग गये पर
रंग गाडा आया
बसंत का
फागुन बन निखर
किशोर
very good , liked it.
shukriya gurmel singh ji
अच्छी कविता.
shukriya vijay ji