कविता ना जमीं में हूँ… नीरज पाण्डेय 09/11/201409/11/2014 “ना जमीं में हूँ, ना आसमां में हूँ, तुझे छूकर जो गुजरी, मैं उस हवा में हूँ”
bahut khoob…sunder panktiya
बहुत खूब. इस गीत को थोडा विस्तार दीजिये.
जरूर, बस आपके आशीष की जरूरत है।
मेरी शुभकामनायें सदा आपके साथ हैं।