ग़ज़ल : अजनबी खुद को लगे हम
अजनबी खुद को लगे हम
इस कदर तन्हा हुए हम
उम्र भर इस सोच में थे
क्या कभी सोचे गए हम
खूबसूरत ज़िंदगी थी
तुम से मिलकर जब बने हम
चाँद दरिया में खड़ा था
आसमाँ तकते रहे हम
सुबह को आँखों में रख कर
रात भर पल – पल जले हम
खो गए हम भीड़ में जब
फिर बहुत ढूँढे गए हम
इस ज़मीं से आसमां तक
था जुनूँ उलझे रहे हम
जीस्त के रस्ते बहुत थे
हर तरफ रोके गए हम
लफ्ज़ जब उरियाँ हुए तो
फिर बहुत रुसवा हुए हम
जागने का ख़्वाब ले कर
देर तक सोते रहे हम
तेरे सच को पढ़ लिया था
बस इसी खातिर मिटे हम
ग़ज़ल पड़ कर मज़ा आ गिया , आप बहुत अच्छा लिखती हैं .
बहुत अच्छी ग़ज़ल !