कविता

उनकी छवियों को

पंखे को लगाव है छत से

घड़ी को दीवार से

कालीन को फर्श से

हरी दूब को प्यार है आँगन से

कोट भी मुझे

है .. अपना समझ कर

पहनता

लेकीन

मुझे इसका अहसास

नही हो पाता

मन के वशीभूत

मै …

रह जाता हूँ

दिवस सा भटकता

भूल जाया करता हूँ

की धरती भी करती है

सूरज की परिक्रमा

चाँद भी निहारता है

पृथ्वी की हर अदा

सितारों कों भी मै

एक कण के तारे सा …

दिखायी देता होउंगा सदा

मेरा जूता ,मेरी चप्पल ,मेरी कमीज

मेरा कालर ,मेरी तमीज

मेरी मै ,मै ..से

ऊब चुके है –

मुझे ऐसा है लगता

इस दुनियाँ की सबसे बड़ी खिड़की

जहां से क्षितिज है मुझे झांकता

इस दुनियाँ का सबसे बड़ा दरवाजा

जहाँ से

समूचा आकाश है मुझे ओढ़ता

वही से सूरज धूप बन मुझे

पढ़ता है

वही से बादल

कोहरा बन मुझे

है आ घेरता

किसी की खूबसूरत निगाहें
मेरी अनुपस्थिति को एकटक देखती हैं

किसी के कान के झुमके
मेरी ख़ामोशी को
गौर से सुनते हैं

इस सच कों मान कर
मै भी चाहता हूँ जीना
उनकी छवियों कों
मन के दर्पण मे
अब समाकर
सबके साथ रहना

किशोर कुमार खोरेन्द्र

किशोर कुमार खोरेंद्र

परिचय - किशोर कुमार खोरेन्द्र जन्म तारीख -०७-१०-१९५४ शिक्षा - बी ए व्यवसाय - भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवृत एक अधिकारी रूचि- भ्रमण करना ,दोस्त बनाना , काव्य लेखन उपलब्धियाँ - बालार्क नामक कविता संग्रह का सह संपादन और विभिन्न काव्य संकलन की पुस्तकों में कविताओं को शामिल किया गया है add - t-58 sect- 01 extn awanti vihar RAIPUR ,C.G.

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