भारतीय संस्कृति पर सीधा हमला है ‘किस आफ लव’
आजकल सोशल मीडिया में एक और चर्चा चल रही है वह है केरल के कोच्चि से शुरू हुआ किस आफ लव अब पूर्णतः राजनैतिक होता जा रहा है और यह साफ पता चल रहा है कि किस आफ लव के आयोजन का एकमात्र उददेश्य केवल और केवल हिंदू संस्कृति की परम्पराओं और मान्यताओं को तहस नहस करना ही है। किस आॅफ लव का अध्ययन करने से यह साफ पत चल रहा है कि यह विदेशी पूंजी निवेश ही मात्र है और इसका उद्देश्य भारतीय युवा जगत को उनके मूलमार्ग से भटकाना ही है। अब किस आफ लव के आयोजकों की हरकतें बर्दाश्त के बाहर जा रही हैं क्योंकि इन लोगों ने इसका एक आयोजन शनिवार (8 नवम्बर 14) को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यालय के बाहर भी किया। किस आफ लव के आयोजकों ने अपने फेसबुक पेज पर इस विषय पर अपने उददेश्य और विचार भी डाले हैं जिन पर खूब चर्चा भी हो रही है।
लगभग हर भारतीय जो अपनी संस्कृति से जरा सा भी प्यार करता है वह इस प्रकार की हरकतों को कभी भी स्वीकार नहीं करेगा। यही कारण है कि आज किस आफ लव के आयोजक फेसबुक व सोशल मीडिया में बहिष्कार व आलोचना के पात्र बन गये हैं। अगर ऐसे लोगों का वाकई कड़ाई से विरोध नहीं किया गया तो लवजेहाद व अन्य मानसिक बीमारियों से ग्रसित हमारे युवा का तो बेड़ा ही गर्क हो जायेगा। आज सोशल मीडिया में यह यक्ष प्रश्न पूछा पूछा जा रहा है कि अगर इन तथाकथित प्यार के दिवाने छात्रों को सरेआम चुंबन करके अपने प्यार का इजहार करना ही है तो फिर यही लोग मोमबत्ती जलाकर बलात्कार और बलात्कारी का विरोध क्यों करते हैं?साथ ही किस आफ लव के आयोजक अपना विरोध प्रदर्शन मस्जिदों व मदरसों के सामने क्यों नहीं कर रहे आखिर मुस्लिम समाज में भी तो महिला को पुरूषों का गुलाम बनाकर रखा जाता है और फिर वह भी बुर्के में। किस आफ लव के आयोजकों तो वहां भी अपना प्रदर्शन करना चाहिए जहां पर महिलाओ की सरेआम हत्या कर लाशें पेड़ पर टांगी जा रही हैं। या फिर जहां पर उनके साथ दुराचार किये जा रहे हैें। किस आफ लव के आयोजकों को वहां पर भी अपना प्रदर्शन करना चाहिये जहां पर कन्याओं की भ्रूणहत्या की जा रही है। जब समाज में कन्यायें ही नहीं पैदा होंगी तो इस प्रकार से सरेआम प्यार का इजहार कैसे होगा। किस आफ लव समाज में जहर उगल रहा है। इस लव के आयोजकोें ने अपने फेसबुक पेज पर संघ परिवार के खिलाफ बेहद आपत्तिजनक टिप्पणियां की हैं। जिसमें लिखा गया है कि ”संघी गुंडे होशियार,तेरे सामने करेंगे प्यार।“ अपने पेज पर जारी संदेश में आगे लिखते हैं “आइए, गले मिलिए, हाथ मिलाइए और किस करिये।” उन्होनें हमसे हमारे कैफे, पब, पार्क, गलियां और मोहल्ले छीन लिये हैं और किस करने के लिए जगह नहीं छोड़ी है। आइए, झंडेवालान चलते हैं जहां संघकार्यालय खड़ा है और अपना विरोध दर्ज करवाते हैं।खाकी निकर वालों हम आ रहे हैं। इससे पहले कोलकाता और कोच्चि में भी माॅरल पुलिसिंग के खिलाफ किस आफ लव का आयोजन हो चुका है।
ऐसा प्रतीत हो रहा है कि इन आयोजनों के पीछे वामपंथी व तथाकथित धर्मनिरपेक्षतावादी विदेशी पैसों के बल पर चलने वाले एनजीओ की भी खास भूमिका है। इन लोगों के पास भारतीय जनता पार्टी व संघ परिवार के आनुषांगिक संगठनों की बढ़ती युवाशक्ति से सीधे टकराने का साहस तो रहा नहीं है। वहीं दूसरी ओर देश में राष्ट्रवादी देशभक्त प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में सशक्त सरकार का बनना इन्हें अब रास नहीं आ रहा है। इसलिए मानसिक विकारों से त्रस्त संगठन इस प्रकार के बेजा आयोजन करके युवाशक्ति का ध्यान मिटा रहे हैं। इन लोगों का एकमात्र मकसद देश में मिली स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति का मजाक बनाना व हिंदू संस्कृति को तार- तार करना है। अब छात्रों का विश्वद्यिालयों में पढ़ाई करने में मन नहीं लग रहा है। वे सब के सब केवल और केवल नशेबाज और प्यार के नाम पर लड़का- लड़की का मजा ले रहे हैं। किस आफ लव के आयोजक जब जनता के सामने अपने छिपे हुए उददेश्य नहीं बता सके तो कहने लग गये है। कि यह एडस जैसी घातक बीमारी के प्रति लोगों में जनजागरूकता फैलाने के उददेश्य से किया जा रहा है।
किस आफ लव के आयोजन के पीछे एक घटना का उदाहरण दिया जा रहा है कि कुछ दिनों पूर्व कोच्चि में बीजेपी के युवामोर्चा की ओर से एक काफीशाॅप पर तोड़फोड़ की गयी थी। फिर यह दावा किया गया कि महाराष्ट्र में एक दलित लड़के की ऊंची जाति की एक लड़की के साथ सम्बंधों के चलते लड़के व उसके परिवार के कुछ सदस्योें की हत्या के विरोध में इस प्रकार के आयोजन किये जा रहे हैं। फिलहाल किस आफ लव के आयोजकों के पास कोई जोरदार तर्क नहीं हैं। यह केवल मजा लूटने और वामपंथी चर्चा प्रेरित संगठनों की बेशरर्म हरकतें हैं । यह अच्छी बात है कि फिलहाल कांग्रेस अभी तक इसका विरोध कर रही है। यह हमारी परम्परागत पारिवारिक विरासत को छिन्न- भिन्न करने की गहरी साजिश है। भारत में प्यार को एक विशेष दृष्टि दी गयी है।केरल का समाज एक पढ़ा लिखा सभ्य समाज माना जाता है। यह बड़े ही दुःख की बात है कि समाज में गंदगी फैलाने की शुरूआत केरल की सरजमीं से ही होती है। अब हमारे बुजुर्गों व सांस्कृतिक संगठनों को इसके खिलाफ युवाओं को जागरूक करना ही होगा। नहीं तो हमारी आगे आने वाली पीढ़ी और युवाधन पूरी तरह से बर्बाद हो जायेगा।
बहुत अच्छा लेख. कुसंस्कृति फ़ैलाने के ऐसे प्रयास शीघ्र ही अपनी मौत मर जायेंगे.