कविता

विस्तार

तुम्हारे दवारा दिल से
तारीफ किए गये
आईने के काँच में
मैं और खूबसूरत
लगाने लगी हूँ

मेरी आँखे तुम्हें
कमल की पंखुरियों
की तरह लगती हैं
मेरे होंठ
और गुलाबी हो गये हैं

मैं पानी सा
पसरती जा रही हूँ
तुम मुझे
रेत की तरह
आत्मसात
करते जा रहे हो

मैं कहाँ से लाउँ
इतना प्यार
जो पा सके
तुम्हारे प्रेम के अनुरूप
सहारा के मरुथल जितना विस्तार

तुम मुझे परत दर परत
छिलते जा रहे हो
मैं अपने मन
अपनी रूह को
तुम्हारे हवाले कर चुकी हूँ

तुम मुझे खोजो
मैं तुम्हारी रगों में
महा नदी सी बह रही हूँ

किशोर कुमार खोरेंद्र

किशोर कुमार खोरेंद्र

परिचय - किशोर कुमार खोरेन्द्र जन्म तारीख -०७-१०-१९५४ शिक्षा - बी ए व्यवसाय - भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवृत एक अधिकारी रूचि- भ्रमण करना ,दोस्त बनाना , काव्य लेखन उपलब्धियाँ - बालार्क नामक कविता संग्रह का सह संपादन और विभिन्न काव्य संकलन की पुस्तकों में कविताओं को शामिल किया गया है add - t-58 sect- 01 extn awanti vihar RAIPUR ,C.G.

3 thoughts on “विस्तार

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी कविता

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत अच्छी कविता , इस को आताम्समार्पण कह लें तो कोई अत्कथिनी नहीं होगी .

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