++++पिता ++++
कमजोर हूँ तो क्या हुआ तुझे अपने
कन्धों पर बिठा कर चल सकता हूँ ,
राह पर कोई कांटे बिछायें तो ,
चुभे ना तुझे बचा के रख सकता हूँ |
गूंगा हूँ तो क्या हुआ ,
तुझे बोलना सिखा सकता हूँ ,
कड़वी भाषा भी कोई बोले तो ,
कैसे तुझे उसमें भी भरनी है
मिठास समझा सकता हूँ |
अंधा हूँ तो क्या हुआ तुझे ,
मन की गहराइयों में
झांकना सिखा सकता हूँ ,
कौन सी चीज है जग में सुन्दर ,
इसका अहसास करा सकता हूँ |
बहरा हूँ तो क्या हुआ,
तेरी खिलखिलाहट को,
समझ-महसूस कर सकता हूँ ,
सुन ना सकू भले ही मैं तेरी बाते पर ,
तेरी हर खुशी को अहसास कर सकता हूँ |
लूला हूँ तो क्या हुआ तुझे ,
अपनी बाँहों में झूला सकता हूँ ,
किसी की बुरी नजर ना पड़े तुझ पर ,
तुझे सीने से लगाये रख सकता हूँ |
लंगड़ा हूँ तो क्या हुआ तुझे ,
चलना सीखा सकता हूँ ,
लड़खड़ाये ना कदम कभी तेरे ,
यूँ चलना बता सकता हूँ |
ओ मेरी बिटिया मैं पिता हूँ तेरा ,
तुझे हर मुसीबत से बचायें रख सकता हूँ ,
तेरे ह्रदय को कोई ठेस ना पहुंचाये ,
मैं इसी लिए तुझे अपने ह्रदय में बसाये रखता हूँ |
||सविता मिश्रा ||
बहत सुन्दर कविता ! पिताओं की भावनाओं को व्यक्त करने के लिए हार्दिक आभार, बहिन जी.
आभार भैया
बहुत अच्छी कविता , सभी पिता बेटी के लिए हर कुर्बानी देने के लिए तैयार रहते हैं .
बिल्कुल भैया ……शुक्रिया