कविता

++++पिता ++++

कमजोर हूँ तो क्या हुआ तुझे अपने
कन्धों पर बिठा कर चल सकता हूँ ,
राह पर कोई कांटे बिछायें तो ,
चुभे ना तुझे बचा के रख सकता हूँ |

गूंगा हूँ तो क्या हुआ ,
तुझे बोलना सिखा सकता हूँ ,
कड़वी भाषा भी कोई बोले तो ,
कैसे तुझे उसमें भी भरनी है
मिठास समझा सकता हूँ |

अंधा हूँ तो क्या हुआ तुझे ,
मन की गहराइयों में
झांकना सिखा सकता हूँ ,
कौन सी चीज है जग में सुन्दर ,
इसका अहसास करा सकता हूँ |

बहरा हूँ तो क्या हुआ,
तेरी खिलखिलाहट को,
समझ-महसूस कर सकता हूँ ,
सुन ना सकू भले ही मैं तेरी बाते पर ,
तेरी हर खुशी को अहसास कर सकता हूँ |

लूला हूँ तो क्या हुआ तुझे ,
अपनी बाँहों में झूला सकता हूँ ,
किसी की बुरी नजर ना पड़े तुझ पर ,
तुझे सीने से लगाये रख सकता हूँ |

लंगड़ा हूँ तो क्या हुआ तुझे ,
चलना सीखा सकता हूँ ,
लड़खड़ाये ना कदम कभी तेरे ,
यूँ चलना बता सकता हूँ |

ओ मेरी बिटिया मैं पिता हूँ तेरा ,
तुझे हर मुसीबत से बचायें रख सकता हूँ ,
तेरे ह्रदय को कोई ठेस ना पहुंचाये ,
मैं इसी लिए तुझे अपने ह्रदय में बसाये रखता हूँ |
||सविता मिश्रा ||

*सविता मिश्रा

श्रीमती हीरा देवी और पिता श्री शेषमणि तिवारी की चार बेटो में अकेली बिटिया हैं हम | पिता की पुलिस की नौकरी के कारन बंजारों की तरह भटकना पड़ा | अंत में इलाहाबाद में स्थायी निवास बना | अब वर्तमान में आगरा में अपना पड़ाव हैं क्योकि पति देवेन्द्र नाथ मिश्र भी उसी विभाग से सम्बध्द हैं | हम साधारण गृहणी हैं जो मन में भाव घुमड़ते है उन्हें कलम बद्द्ध कर लेते है| क्योकि वह विचार जब तक बोले, लिखे ना दिमाग में उथलपुथल मचाते रहते हैं | बस कह लीजिये लिखना हमारा शौक है| जहाँ तक याद है कक्षा ६-७ से लिखना आरम्भ हुआ ...पर शादी के बाद पति के कहने पर सारे ढूढ कर एक डायरी में लिखे | बीच में दस साल लगभग लिखना छोड़ भी दिए थे क्योकि बच्चे और पति में ही समय खो सा गया था | पहली कविता पति जहाँ नौकरी करते थे वहीं की पत्रिका में छपी| छपने पर लगा सच में कलम चलती है तो थोड़ा और लिखने के प्रति सचेत हो गये थे| दूबारा लेखनी पकड़ने में सबसे बड़ा योगदान फेसबुक का हैं| फिर यहाँ कई पत्रिका -बेब पत्रिका अंजुम, करुणावती, युवा सुघोष, इण्डिया हेल्पलाइन, मनमीत, रचनाकार और अवधि समाचार में छपा....|

4 thoughts on “++++पिता ++++

  • विजय कुमार सिंघल

    बहत सुन्दर कविता ! पिताओं की भावनाओं को व्यक्त करने के लिए हार्दिक आभार, बहिन जी.

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत अच्छी कविता , सभी पिता बेटी के लिए हर कुर्बानी देने के लिए तैयार रहते हैं .

Comments are closed.