कविता : चिट्ठी
दूर देश से आई चिट्ठी
उसमें थी वतन के मिट्टी की सोंधी खुशबू
ख़त में थे माँ की स्नेहिल झिड़की
क्यों नहीं आती तुम्हारी चिट्ठी
थोड़ी खट्टी थोड़ी मिट्ठी
काश तुम भी लिखती चिट्ठी
और थी चिंताएं तमाम
जिस पर था बस मेरा नाम
संग थी दुवाओं का अनंत अम्बार
थोड़े उलाहने अनगिनत प्यार
भर आई यूँ मेरी अँखियाँ
क्या कहूँ माँ,मैं तुमसे दिल की बतियाँ
मैं भी याद करती हूँ तुम्हें कई बार
पर हूँ थोड़ी व्यस्त और लाचार
तुम्हारे आँचल की शीतल छाया
आज फिर मुझे याद बहुत आया
माँ मैं करती हूँ तुझे प्रणाम
लिखूंगी ख़त मैं तेरे नाम
पापा को कहना मेरा प्रणाम
शेष रह गई बातें तमाम ……….|
संगीता सिंह ”भावना”
संगीता बहन , कविता पड़ कर मैं भी कुछ भावुक हो गिया किओंकि कोई समय था जब मेरी चिठ्ठी भी मेरी माँ को जाया करती थी और उनकी चिठ्ठी मुझे आती थी . उस में वोह सब कुछ होता था जो आप ने लिखा है .
बहुत खूबसूरत कविता.