कविता

खिल उठते हैं

खिल उठते हैंजब पतंग की तरह
उड़ा करता था मन
वह था मेरा बचपन

सौंदर्य की आंच से
झुलस जाने को
तरसता था तन
वह था मेरा यौवन

बीत गए मेरी उम्र के
अनगिनत बासंती क्षण
ख्यालों के जल में
अब परछाईयाँ शेष हैं
उन्हीं मधुर पलों के
सायों का
मैं किया करता हूँ
एकांत मैं अनुसरण

जब कोयल की कूक ,
या भवरों के गुंजन
का करता हूँ श्रवण
पंखुरियों पर बैठी हुई
तितलियों सा
मेरी कल्पनाये भी
करती हैं
तब रसमय चिंतन
उस अपरचित सी युवती का
मेरे सपनो में होता हैं
आज भी आगमन
जिसका घर हैं मेरा अचेतन
मेरे मन में छिपी तरुणाई को
आज भी भींगा जाता हैं सावन

मेरी सांसों में
उसकी रूह कीखुश्बू हैं
दोनों के एक ही
लय पर
आबद्ध हैं स्पंदन
आते ही मधुमास के
पलाश सा
खिल उठते हैं
फिर से मेरी
मधु स्मृतियों के सुमन

किशोर कुमार खोरेन्द्र

 

किशोर कुमार खोरेंद्र

परिचय - किशोर कुमार खोरेन्द्र जन्म तारीख -०७-१०-१९५४ शिक्षा - बी ए व्यवसाय - भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवृत एक अधिकारी रूचि- भ्रमण करना ,दोस्त बनाना , काव्य लेखन उपलब्धियाँ - बालार्क नामक कविता संग्रह का सह संपादन और विभिन्न काव्य संकलन की पुस्तकों में कविताओं को शामिल किया गया है add - t-58 sect- 01 extn awanti vihar RAIPUR ,C.G.

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