परिवर्तित व्यवहार
अक्षर शब्द रस
छंद ,और अलंकार
देख कर मेरा परिवर्तित व्यवहार
मुझसे पूछते हैं
कब हुआ तुमसे ,मेरा प्यार
झरता हैं अमलताश
घेर लेते हैं मेरे गले को
पुष्प बनकर हार
पल भर के लिए भी
जाता नहीं मेरे मन से
तुम्हारा विचार
कोई बात नहीं होती
फिर भी
मुस्कुराने लगता हूँ
आँखों की चमक
करने लगती हैं
अनुपम आनंद का इज़हार
शुक्ल पक्ष के चाँद सा
आते जा रहा हैं
शैने शैने मुझमे निखार
अर्जित कर लिया हो मानो
मैंने
प्रकृति प्रदत्त कोई
सजीव उपहार
खुद को देखने के लिए
अब आईने की ज़रूरत नहीं रही
तुम्हारी आँखों में
अपनी खूबसूरती को
कर लिया करता हूँ निहार
किशोर
बहुत अछे .
वाह ! वाह !!