कविता

हाईकु – नैन, आँख, चक्षु

 

बोलते नैन
मन की अनकही
खुलते राज़

समझे नैन
शरम बेशरम
सक्षम खूब

बरसे नैन
फिर हुई बेचैन
माँ की ममता

आँख का पानी
मर्यादा अभिमानी
उम्र बितानी

मन की भाषा
बांचने का हुनर
नैन के द्वार

चंचल चक्षु
देखे मनभावन
हिय सराहे

अँखियाँ कारी
करे कारगुजारी
पसरे प्रीत

One thought on “हाईकु – नैन, आँख, चक्षु

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया !

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