कविता

तुमसे मन ही मन

तुम छूटी हुई वह एक बिंदु हो

जिसके बिना

पूरी कविता मुझे अधूरी सी लगती हैं

तुम गायब वह एक सरस पृष्ट हो

जिसके बिना

सम्पूर्ण किताब पढ़कर भी

मैं असंतुष्ट रह जाता हूँ

किसी चौराहे पर ..

बरसों पुराने किसी वृक्ष के

नदारद हो जाने पर भी

जैसे उसके होने का अहसास

मेरे मन में ऊगा हुआ रहता हैं

बिलकूल उसी तरह से

तुम मुझे याद रहती हो

मेरे लिए तुम इंजिन हो

और मैं ..अनाथ से खड़े रेल की बोगियों की तरह

तुम्हारा इंतज़ार करता रहता हूँ

बहुत दिनों से मैंने नीलकंठ को

तार पर बैठे हुए नहीं देखा हैं

आँखे बंद कर

तुमसे मन ही मन

कुछ कहे हुए काफी दिन हो गए हैं

आज की सुबह का अखबार भी

मेरी आँखों से हुई आंसूओं की

हल्की बूंदाबांदी से भींग गया हैं

 

किशोर कुमार खोरेन्द्र

किशोर कुमार खोरेंद्र

परिचय - किशोर कुमार खोरेन्द्र जन्म तारीख -०७-१०-१९५४ शिक्षा - बी ए व्यवसाय - भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवृत एक अधिकारी रूचि- भ्रमण करना ,दोस्त बनाना , काव्य लेखन उपलब्धियाँ - बालार्क नामक कविता संग्रह का सह संपादन और विभिन्न काव्य संकलन की पुस्तकों में कविताओं को शामिल किया गया है add - t-58 sect- 01 extn awanti vihar RAIPUR ,C.G.

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