कविता

कविता : हम सब एक हैं

हम सब एक है
एक धरती एक उपवन
हम सब उसके बासी है
मिली धूप हमें एक बराबर
मिटटी के कर्ण के सामान हम
रूप रंग हो भले अलग हमारे
पर मन से हम एक है
अलग अलग है बोली हमारी
हम सब फिर भी एक है
सूरज एक हमारा है
जो किरणे फैलाता है
देता है रौशनी हमको
जग का अँधेरा मिटाता है
एक चाँद है जो देता है
शीतलता हमको
फिर भी हम सब एक है
कितना कुछ दिया हमको
पर हम समझ न पाए
लड़ते रहते है हम सब
क्यों न प्यार की भाषा समझाए
हम सब एक है ये सबको बताये

गरिमा लखनवी

दयानंद कन्या इंटर कालेज महानगर लखनऊ में कंप्यूटर शिक्षक शौक कवितायेँ और लेख लिखना मोबाइल नो. 9889989384

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