मंझधार
बिना शब्दों के तुझे लिखने लगा हूँ
क्षितिज से मै तुझे दिखने लगा हूँ
शमा बनकर तू जल उठी है
मै परवाने सा मिटने लगा हूँ
जगमगाती सड़कें रात भर खामोश ही रहे
टिमटिमाते तारों के कहने पर चलने लगा हूँ
झील की सतह पर चाँद उतर आया है
तेरी आँखों में परछाई सा उभरने लगा हूँ
दर्द के सागर से यादों की एक तेज लहर आई है
साथ साथ उसके अब मैं मंझधार में बहने लगा हूँ
किशोर कुमार खोरेंद्र
अच्छी कविता !
shukriya vijay ji
Zil ki satah par chand uutar aay hai!!!
Mast lines he sir ji.
shukriya mayur ji