कविता

हाइकु

1
ठूँठ का मैत्री
वल्लरी का सहारा
मर के जीया।
2
शीत में सरि
स्नेह छलकाती स्त्री
फिरोजा लगे।
3
गरीब खुशियाँ
बारम्बार जलाओ
बुझे दीप को।
4
क्षुधा साधन
ढूंढें गौ संग श्वान
मिलते शिशु।
5
आस बुनती
संस्कार सहेजती
सर्वानन्दी स्त्री।
सर्वानन्दी = जिसको सभी विषयों में आनंद हो
6
स्त्री की त्रासदी
स्नेह की आलिंजर
प्रीत की प्यासी।

आलिंजर = मिटटी का चौड़े मुँह का बर्तन = बड़ा घड़ा
7
साँझ ले आई
नभ- भेजा सिंधौरा
भू-माँग भरी।
8
झटके केश
नहाई निशा ज्यों ही
ओस छिटके।
9
बिज्जु की लड़ी
रजतमय सजी
नभ की ड्योढ़ी।

=== विभा ===

*विभा रानी श्रीवास्तव

"शिव का शिवत्व विष को धारण करने में है" शिव हूँ या नहीं हूँ लेकिन माँ हूँ

2 thoughts on “हाइकु

  • विजय कुमार सिंघल

    गहरा अर्थ लिये हाइकु.

    • विभा रानी श्रीवास्तव

      बहुत बहुत धन्यवाद आपका

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