कविता

उम्मीद

सारे दर्द का फ़साना, उम्मीद ही है,

बूढ़े माँ-बाप का तराना, उम्मीद ही है।

बड़े लाड-प्यार से पाला, बेटे को हमने,

बुढ़ापे में बनेगा सहारा, उम्मीद ही है।

 

डॉ अ कीर्तिवर्धन

One thought on “उम्मीद

  • विजय कुमार सिंघल

    सही कहा. उम्मीद पर ही दुनिया टिकी है. वर्ना अगली साँस का भी कोई भरोसा नहीं.

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