घना सहरा
चाँद सा जिसका सुंदर चेहरा है
उसकी चाँदनी ने मुझे आ घेरा है
हर तरफ उजाला सा लगता है
वहाँ का छंट गया अंधेरा है
रात भर सपनों में तारो सा जगमगाते हो
मेरे ख्यालों मे तेरी यादों का सुनहरा सवेरा है
घोसलें में शाम होते ही लौट आते हैं जैसे पंछी
मेरा हृदय भी तेरे इंतज़ार का रैन बसेरा है
बहारों के मौसम सा लगाने लगा हैं हर एक पल
अपने अपने दिल पर अधिकार अब रहा न तेरा न मेरा है
पेड़ के नीचे छाँव ठहरी रहती हैं जैसे
तेरी पलकों में मेरे लिए घना सहरा है
किशोर कुमार खोरेंद्र
अच्छी कविता. पर यह ग़ज़ल नहीं है.