प्रेम
जब कभी ढुँढ़ोगी प्रेम
छली जाओगी
हो सके तो ढुँढ़ लेना
अपने अंतस का प्रेम
जब कभी ढुँढ़ोगी सहारा
छली जाओगी
हो सके तो ढुँढ़ लेना
अपनी आजादी . . .
“सीमा-संगसार”
जब कभी ढुँढ़ोगी प्रेम
छली जाओगी
हो सके तो ढुँढ़ लेना
अपने अंतस का प्रेम
जब कभी ढुँढ़ोगी सहारा
छली जाओगी
हो सके तो ढुँढ़ लेना
अपनी आजादी . . .
“सीमा-संगसार”
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कविता अच्छी लगी बहन जी .
बहुत अच्छी कविता.