कविता

प्रेम

जब कभी ढुँढ़ोगी प्रेम
छली जाओगी
हो सके तो ढुँढ़ लेना
अपने अंतस का प्रेम
जब कभी ढुँढ़ोगी सहारा
छली जाओगी
हो सके तो ढुँढ़ लेना
अपनी आजादी . . .

“सीमा-संगसार”

सीमा सहरा

जन्म तिथि- 02-12-1978 योग्यता- स्नातक प्रतिष्ठा अर्थशास्त्र ई मेल- [email protected] आत्म परिचयः- मानव मन विचार और भावनाओं का अगाद्य संग्रहण करता है। अपने आस पास छोटी बड़ी स्थितियों से प्रभावित होता है। जब वो विचार या भाव प्रबल होते हैं वही कविता में बदल जाती है। मेरी कल्पनाशीलता यथार्थ से मिलकर शब्दों का ताना बाना बुनती है और यही कविता होती है मेरी!!!

2 thoughts on “प्रेम

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    कविता अच्छी लगी बहन जी .

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छी कविता.

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