राजनीति का लक्ष्य
राजनीति एक ऐसा मंच है जहाँ समर्पण के बिना कुछ नहीं होता और जिसमे देशप्रेम का जज्बा होता है वही इस क्षेत्र में आगे बढ़ सकता है, वरना घर बैठकर खाने का इरादा रखने वाले बहुत हैं, स्वार्थ सिद्धि में स्वयं को बर्बाद कर लेने वाले बहुत हैं!
मैं आशुतोष भैया की एक पोस्ट पढ़ रहा था उन्होंने बहुत ही स्पस्ट बात कही ‘आजकल कोई कार्यकर्ता नहीं बनना चाहता, सभी नेता बनना चाहते हैं’ ये बिलकुल सच्ची बात है, सौ टका सत्य! एक कार्यकर्ता का जैसा जीवन होता है उसमे केवल एक ही भाव निहित होता है ‘समर्पण’, और वही समर्पण उसे ऊपर उठाता है, आज जितने भी नेता जिन्हें हम अच्छे नेता कहते हैं उन्होंने समर्पण के भाव को ही ह्रदय में अंगीकार कर आज वो स्थान पाया है, कार्यकर्ता अपने आप में एक स्वयंसेवक होता है उसका सबकुछ संगठन की शक्ति को दृढ़ करने में समर्पित होता है! हर दल में एक कर्मठ कार्यकर्ता जरुर होता है जिसके ह्रदय में अपने संगठन को शिखर तक ले जाने का जज्बा होता है, मैं भाजपा, कांग्रेस, सपा, बसपा इत्यादि की बात नहीं करता सभी दलों के अपने अपने कर्मठ और समर्पित कार्यकर्ता हैं, जो विजय में आनंदित होते हैं और पराजय पर उन्हें दुःख होता है! कार्यकर्ता के सम्बन्ध में स्वामी विवेकानंद जी की एक बात मुझे आती है कि ‘अपनी पूरी श्रद्धा से समर्पण से राष्ट्रभक्ति में जुट जाओ तुम किस रंग के ध्वज के नीचे कार्य करते हो इससे फर्क नहीं पड़ता, तुम तो बस पूरे समर्पण से अपने राष्ट्र की उन्नति के लिए तत्पर हो जाओ, इसीलिए उठो, जागो और लक्ष्य की प्राप्ति तक रुको मत’ निश्चित ही ये शब्द हमारे अन्दर ऊर्जा का संचार कर देते हैं!
जब हमारा लक्ष्य राष्ट्र की उन्नति और जन जागृति का होता है तब सारी सकारात्मक शक्तियां हमारे साथ हो जाती हैं, और जिनका ध्येय ही यदि स्वार्थ सिद्धि होता है तो उसका पतन भी यहाँ निश्चित तौर पर हो जाता है, अतः यदि हम किसी सामाजिक या राजनैतिक मंच पर आयें तो एक अच्छा कार्यकर्ता बनना हमारा लक्ष्य होना चाहिए ना की नेतागिरी!
गुरमेल सिंह जी से सहमत!
आप ने सही बात लिखी है , आज कल तो दल बदल की निति ही दिख रही है , देश प्रेम के जज्बे वाले कम हैं . अब बीजेपी का पलड़ा भारी है , कुछ नेता अपनी पार्टिओं को छोड़ बीजेपी के साथ जुड़ रहे हैं , कियों ? उस में उनको फैदा है . देश प्रेमी तो मोदी जैसे लोग हैं जिन के पास ज़िआदा धन दौलत भी नहीं है और ना ही उनको धन दौलत में दिलचस्पी है . एक ही मन में धुन है , देश को उन्ती की और ले जाना .
सही कहा आपने, भाई साहब !
बहुत सही बात !