करार
तुम मुझसे कभी न होना बेजार
फिराक के नज़र न आये आसार
मेरी निगहीँ के भीतर तुम रहते ही हो
मन की आँखों से भी कर लेता हूँ तेरा दीदार
जब तक हम दोनों के दरमियान है प्यार
घूमती रहेगी धरती रहेगा यह संसार
ख्वाब है गर यह दुनियाँ तो
सपनों मे आओ करे करार
मुझे तो आजकल नींद आती नही
तुम भी तो रहने लगे हो बेदार
किशोर कुमार खोरेंद्र
{बेजार =विमुख, फिराक =वियोग, आसार =लक्षण, दीदार =दर्शन, दरमियाँ =बीच, करार =वचन, बेदार =जाग्रत, सचेत }
बढ़िया !
बहुत अच्छी कविता .