ममता बनर्जी का अराजक राजनैतिक आचरण
पश्चिम बंगाल की राजनैतिक हवा का रूख अब काफी तेजी से बदलता लग रहा है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अब पहली बार अपने आप को असुरक्षित महसूस करने लग गयी हैं। शारदा चिटफंड घोटाले और बर्दमान विस्फोट की जांच का काम जैसे-जैसे आगे बढ़ रहा है, वैसे-वैसे ममता बनर्जी के लिए मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं। तृणमूल कांग्रेस के सांसदों की गिरफ्तारियां हो रही हैं तथा एक आरोपी सांसद कुणाल घोष ने तो अदालत में पेश होने के पूर्व ही ममता बनर्जी के खिलाफ बयानबाजी शुरू कर दी है। पूर्व सांसद कुणाल घोष का कहना है कि ममता बनर्जी को ही शारदा चिटफंड घोटाले से सर्वाधिक लाभ पहुंचा है। उन्होनें जज अरविंद मिश्रा से अपील की है कि सीबीआई को ममता बनर्जी और घोटाले के मुख्य अभियुक्त सुदिप्तो सेन के सामने मुझसे सवाल पूछने चाहिये।
उधर बर्दमान विस्फोट के बाद जिस प्रकार से जांच एजेंसियां आगे बढ़ रही है तथा प्रतिदिन नित नये खुलासे हो रहे हैं वह बेहद चैंकाने वाले हैं। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का बांग्लादेशी घुसपैठियों से प्रेम किसी से छुपा नहीं हैं। चुनावों के दौरान उन्होनें बांग्लादेशी घुसपैठियों की जोरदार वकालत भी की थी। उनकी मुस्लिम तुष्टीकरण की नीतियों का ही परिणाम है कि आज पश्चिम बंगाल आतंकियोें की आसान शरणगाह बन गया है। खबर है कि वहां पर 65 आतंकी शिविरों का संचालन हो रहा था। पश्चिम बंगाल में राजनैतिक हिंसा भी काफी बढ़ी हुई है। तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ता पूरे राज्य में हिंसक वातावरण पैदा कर रहे हैं। अभी हाल ही मेें मुर्शिदाबाद सहित कई अन्य स्थानों पर कांग्रेस व वामपंथी कार्यकर्ताओं के साथ हिंसक झड़पें हुई हैं। कई स्थानों पर भाजपा नेताओं व कार्यकर्ताओं पर भी हमले व लाठीचार्ज आदि हो रहे हैं। एक प्रकार से देखा जाये तो मुस्लिम तुष्टीकरण के बल पर सत्तासीन हुई मुख्यमंत्री जहां एक अच्छी सरकार दे पाने में विफल साबित हो रही हैं वहीं अब वह भाजपा के बढ़ते ग्राफ से भी चिंतित होकर सीधे-सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व सरकार के साथ टकराव के मूड में आ गयी हैं।
ममता बनर्जी को सबसे अधिक परेशानी इस बात का लेकर हो रही है कि अब बंगाल में भाजपा की लोकप्रियता तेजी से बढ़ रही है तथा वामपंथी संगठनोें का प्रभाव तेजी से घट रहा है। बंगाल की मुख्यमंत्री को भाजपा की बढ़त से इतनी अधिक बैचेनी हो रही है कि भाजपा ने कोलकाता नगर निगम से स्प्लैनेड स्कवेयर पर 30 नवम्बर को रैली की इजाजत मांगी थी लेकिन वह रैली करने की इजाजत नहीं दीं गयी, जिसके कारण भाजपा को कोलकाता हाईकोर्ट की शरण में जाना पड़ा।
वहीं ठीक इसके विपरीत मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अब सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर ही हमला बोल दिया है। ममता बनर्जी ने बेलगाम होकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ‘दंगा गुरू’ कहा। ममता ने मोदी को ‘सेल्फी गुरू’ भी कहा। आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री मोदी देश से लोगों को ढोकर ले जाते हैं और सेल्फी करवाते हैं। ममता ने प्रधानमंत्री पर आरोप लगाया कि उन्हें ऐसे लोगों के प्रमाणपत्र की जरूरत नहीं हैं जिनके हाथ दंगों के खून से रंगे हुए हों। जब से मोदी सरकार सत्ता में आई है तो देश मे दंगे बढ़ गये हैें। ममता का यह भी कहना है कि केंद्र सरकार सीबीआई के हाथों उन्हें शारदा चिटफंड घोटाले में फंसा रही है साथ ही हो सकता है कि वर्दमान विस्फोट में भी केंद्रीय एजेंसियों का हाथ हो। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की बेलगाम राजनैतिक बयानबाजी से यह बात समझ में आ गयी है कि वह अब दबाव में आ गयी हैं तथा अपनी विफलताओं का सारा का सारा ठीकरा केंद्र सरकार पर थोपकर तथा टकराकर राज्य को और अधिक मुसीबतों में डालना चाह रही हैं।
ममता के आचरण से लग रहा है कि वह स्वयं राज्य को अभूतपूर्व अराजकता की आग में झोंककर अपराधियों व दंगाईयों को राजनैतिक संरक्षण देकर मोदी सरकार को बदनाम करने का खेल खेलना चाह रही हैं। उनकी चाहत फिलहाल पूरी होने वाली नहीं हैं। 30 नवम्बर कोलकता में भाजपा की रैली में आने वाली भीड़ से वह घबरा गयी हैं। इसीलिए उन्होनें साहित्यिक व सामाजिक संगठनो को भी भड़काने का प्रयास किया है जबकि वास्तविकता यह है कि अब उनका प्रभाव भी कम हो रहा है। ममता बनर्जी देश की पहली ऐसी मुख्यमंत्री बन गयी हैं जिन्होनें अभी तक राजनैतिक शिष्टाचारवश प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात नहीं की है, वे चाहती हैं कि सारी समस्याओं का समाधान एक ही दिन में हो जाये।
ममता बनर्जी को पता होना चाहिये कि गुजरात में चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेसाध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री मोदी को मौत का सौदागर कहा था तथा महाराष्ट्र के चुनावों में शिवसेना नेता ने मोदी की तुलना अफजल खां से कर दी थी। उसका परिणाम आज पूरे देश के सामने है। वही गलतियां अब ममता कर रही हैें, जबकि अंदर की बात यह है कि वह अब चारों ओर से घिर गयी हैं। सेकुलर दलों का मोर्चा बनवाने की खातिर वह नेहरू जयंती के कार्यक्रम में पहुंची, पर वहां सफलता नहीं मिली। फिर उन्होनें मोदी सरकार के साथ मेलमिलाप करने का असफल प्रयास किया तथा बीजेपी खेमे से निराश लौटना पड़ा। वामपंथी संगठनों के साथ मेलमिलाप के प्रयास विफल हो चुके हैं। वामपंथी उन्हें कतई माफ करने के मूड में नहीं दिखलाई पड़ रहे तथा उनका पचास प्रतिशत संगठन भी मोदी के साथ जुड़ चुका है। आज पूरे बंगाल में घोर राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक अराजकता का वातावरण उत्पन्न हो रहा है।बंगाल में बिजली का संकट है। राज्य सरकार कर्ज में डूबी है। आमजनमानस को ममता से आशायें थीं लेकिन वह अब समाप्त हो रही है।
यही कारण है कि अब बंगाल की जनता भी नये बदलाव के बयार की ओर जाना चाह रही है। विगत तीन दशकों से बंगाल में ऐसी सत्ता रहीं जिसने केंद्र के साथ मिलकर विकास पर ध्यान नहीं दिया। बंगाल की जनता को यह सुअवसर 2016 में मिल भी सकता है। इस बार ममता को अकेले ही मैदान में उतरना होगा। हवा का रूख बदला हुआ होगा। वामपंथी कुछ दबे से होंगे तथा कांग्रेसी पस्त होंगे लेकिन भाजपा कार्यकर्ता अमित शाह व प्रधानमंत्री मोदी की लहर के साथ पूरे उत्साह में सराबोर होंगे। अगर झारखंड, जम्मू-कश्मीर व दिल्ली में भाजपा की सरकारें बन गयी, तो यह उत्साह दूना-तिगुना हो जायेगा। यही कारण है कि ममता बनर्जी भी मोदी-मोदी करने लग गयी हैं ।
अच्छा लेख. ममता बनर्जी की सारी हरकतें ठीक वैसी ही हैं जैसी कोई व्यक्ति भारी संकट में फंस जाने पर करता है और बचने के लिए हाथ-पैर मारता है. अपनी हर हरकत से ममता उपहास का ही पात्र बन रही हैं. अगर उन्हें बचना है तो तत्काल गद्दी छोड़कर संन्यास ले लेना चाहिए. सारधा घोटाले में उनके फंसे होने के प्रमाण धीरे धीरे सामने आ रहे हैं, जो उनके राजनैतिक जीवन को ख़त्म कर देंगे. मोदी जी से पंगा लेना ममता की मूर्खता की चरम सीमा है.