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फलित ज्योतिष पाखंड मात्र है

ज्योतिष के नाम पर विभिन्न प्रकार के प्रपंच समाज में देखने को मिलते हैं। वर्तमान में शिक्षा मंत्री स्मृति ईरानी द्वारा भीलवाड़ा के ज्योतिषी नाथू लाल व्यास को हाथ दिखाने की खबर मीडिया में जोर शोर से उठ रही हैं। विपक्ष देश के शिक्षा मंत्री को सलाह दे रहा हैं कि उन्हें वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देना चाहिए जबकि विपक्ष यह भूल जाता हैं कि उनके तत्कालीन रेल मंत्री पवन बंसल ने अपनी कुर्सी बचाने के लिए ज्योतिषी के कहने पर बकरे की बलि दी थी फिर भी पद छीन गया था। हमारा विषय फलित ज्योतिष की प्रमाणिकता को लेकर विचार करना है, न कि राजनीति करना हैं।

प्राचीन काल में गणित ज्योतिष का प्रचार था जिसका सम्बन्ध विभिन्न ग्रहों के परिभ्रमण, मौसम आदि में परिवर्तन, सूर्य-चन्द्रमा आदि के उदय-अस्त से सम्बंधित था। यह पूर्ण रूप से वैज्ञानिक एवं युक्तिसंगत था। कालांतर में फलित ज्योतिष प्रसिद्ध हो गया। फलित ज्योतिष का सिद्धांत ग्रह चक्रों आदि द्वारा व्यक्ति के भाग्य पर पड़ना एवं उसके नकारात्मक प्रभाव से बचाव के लिए कर्म कांड, अनुष्ठान आदि को प्रधानता देना था। इस सिद्धांत के चलते लोग धर्म भीरु हो गए एवं वेद विदित कर्म फल सिद्धांत को भूलकर अपने साथ हो रही किसी भी अप्रिय घटना का श्रेय गृहदशा को देने लग गए। उसके पश्चात इस कुपित दशा के निराकरण के लिए नए नए विधानो का सहारा लिया जाने लगा जिसकी परिणीति अन्धविश्वास के रूप में होती हैं।

एक प्राचीन घटना यहाँ पर देनी उपयोगी रहेगी। एक राजा ने ज्योतिषी के कहने पर अपने बाग़ में एक पौधा लगवाया। ज्योतिषी का कहना था की जब तक यह पौधा हराभरा रहेगा तब तक आपका राज्य उन्नति करेगा। सयोग से उस पौधे की देखभाल कर रहा माली अपने गांव चला गया और अपने परिचित एक युवक को बाग़ की देखभाल के लिए छोड़ गया। उस पौधे को कुछ टेढ़ा लगा देखकर उस युवक ने उसका स्थान परिवर्तन कर दिया जिससे वह पौधा सुख गया। राजा को जैसे ही यह मालूम पड़ा, उन्होंने उस युवक को प्राणदंड की आज्ञा दे दी। युवक इच्छा पूछी गई तो उसने उस ज्योतिषी को बुलाने को कहा। उस ज्योतिषी से उस युवक ने पूछा आप इतने बड़े राज्य के भविष्य को जानने की योग्यता रखते हैं परन्तु आपकी विद्या यह क्यों नहीं बता सकी कि आपकी भविष्यवाणी के कारण बेचारा गरीब फांसी को प्राप्त होगा। ज्योतिषी निरुत्तर होकर वापिस आ गया।

ऐसी ही एक और घटना काँगड़ा के प्रसिद्द धनी ठाकुर के गृह की हैं। उनके घर पर वर्षों के पश्चात एक बालक का जन्म हुआ। उस बालक की कुंडली बनाई गई। ज्योतिषी के कुंडली देखकर कहा कि बालक का मुख देखने से गृहस्वामी को मृत्यु का योग है। सभी चिंताग्रस्त हो गए। आखिर में बालक को माता पिता से अलग कर घर के ग्वाले को सौप दिया गया। आठ वर्ष की आयु तक बालक अनपढ़ रहा एवं बकरियां चराना मात्र सीख सका। संयोग से लाहौर से एक आर्यसमाजी प्रचारक वहां पर आये। उन्हें जब इस विच्छेद का परिचय हुआ तो उन्होंने उस बालक को लाहौर ले जाकर शिक्षित करने की घरवालों से आज्ञा मांगी। भरे मन से बालक को बिना मुख देखे विदा कर दिया गया। अपनी शिक्षा पूर्ण कर वह बालक जिसे दुर्भाग्यशाली समझा गया था भारत के प्रथम न्यायाधीश जस्टिस मेहरचंद महाजन के नाम से प्रसिद्द हुआ। धन्य हैं उन प्रचारक का अन्यथा ज्योतिषी के चलते वह जीवन भर बकरियां ही चराते रहते।

वैसे आज भी दिये तले अँधेरे की कहावत देखने को मिलती हैं। दूसरों का भविष्य बताने वाले आशु भाई ज्योतिषाचार्य के यहाँ से 50 लाख रूपए की चोरी हो गई। आप लोगों को किसी भी प्रकार की विपत्ति अथवा कठिनाई न आये अथवा कोई कठिनाई आ जाये तो उससे निपटने का समाधान बताते हैं। आप जाने क्यों अपनी ज्योतिष विद्या से अपने ऊपर आने वाली विपत्ति का पता न लगा सके और चोरों ढूंढने के लिए आपको पुलिस की सहायता लेनी पड़ी। जिन दो व्यक्तियों पर चोरी का अंदेशा था वे दोनों तीन वर्ष से आशु भाई के पास कर्मचारी के रूप में रह रहे थे। जब उनको आशु भाई ने नौकरी पर रखा तो उनकी जन्म पत्री देख कर आशु भाई यह क्यूँ नहीं जान पाए की यह भविष्य में उन्हीं के यहाँ पर चोरी करेगे?

इस प्रकार से अनेक उदाहरण हमें देखने को मिलते हैं जहाँ पर ज्योतिषी अपनी समस्याओं का स्वयं समाधान नहीं निकाल पाते और अन्य लोगों की समस्यायों का समाधान करने का भारी भरकम दावा करते हैं। आखिर क्यों भारत का एक भी ज्योतिषी यह नहीं बता पाया की उत्तराखंड में प्राकृतिक आपदा में हज़ारों निर्दोष लोगों को अपने प्राण गवाने पड़ेंगे? आखिर क्यों एक भी ज्योतिषी ट्रैन आदि की टक्कर के विषय में कभी नहीं बता पाता जिससे लोगों की प्राण रक्षा हो सके। तलाक, गृह कलेश, मारपीट, आपसी मतभेद, नशे आदि की लत उन वैवाहिक संबंधों में भी सामान्य रूप से देखने को क्यों मिलती हैं जिनके माता-पिता स्वयं ज्योतिषी होते हैं और कुंडलियों के पूर्ण मिलान के पश्चात ही वे विवाह करते और कराते हैं।

ज्योतिष विद्या पाखंड मात्र हैं। निर्धन व्यक्ति परिश्रम करने के स्थान पर शॉर्टकट से धनी बनने के चक्कर में इस पाखंड का शिकार बनता हैं जबकि धनी व्यक्ति उसका धन कहीं चला न जाये इस भ्रम से फलित ज्योतिष का सहारा लेता हैं। समाज में अगरसुधार करना चाहते हैं तो पुरुषार्थ को बढ़ावा दीजिये न कि चमत्कार को बढ़ावा देना चाहिए।

— डॉ विवेक आर्य

5 thoughts on “फलित ज्योतिष पाखंड मात्र है

  • जवाहर लाल सिंह

    बहुत ही प्रभावकारी लेख लिखते है आप आपका अभिनन्दन!

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    विवेक जी , आप का लेख धमाकेदार है , मुझे बहुत दुःख होता है यह जोतिषी महोदय लोगों को शरेआम लूटते हैं . मुझे याद है जब बीजेपी की हार के बाद मनमोहन सिंह जी प्राइमिनिस्तर बने थे तो जितिशिओं ने इतने अंदाज़े लगाए थे कि कोई हिसाब नहीं . एक भी जियोत्शी ने नहीं फोरकास्ट किया कि मनमोहन सिंह प्राइमिनिस्तर बनेगा . मैंने एक सच्ची लघु कथा भी लिखी थी , जिओतिश एक वहम , जो एक मशहूर जिओतिशी की है जो लोगों की शादिआन की कुन्द्लिआन बनाता था लेकिन उस की खुद की बेटी का पती शादी के कुछ वर्ष बाद ही कार हादसे में मारा गिया था . आज इतने तलाक हो रहे हैं तो शुभ महूरत निकालने के बाद भी कियों तलाक हो जाता है ? जो बचपन से हमारे खून में वहम का इंजेक्शन लगाया जाता है यह इसी का नतीजा है कि हम वहम लेकर ही पैदा होते हैं .

  • Man Mohan Kumar Arya

    लेख प्रभावशाली, सारगर्भित एवं तथ्यपूर्ण है। बधाई। कृपया संस्कृत के महत्व पर भी एक लेख लिखें। आपका लेख पढ़ कर डॉ. सोमदेव शास्त्री जी का एक प्रवचन याद आ गया जिसमे उन्होंने बताया था कि संत तुलसीदास भी एक ऐसे नक्षत्र में जन्मे थे जो माता पिता के लिए अति भारी था। यदि वह तुलसीदास का मुख देख लेते तो फलित ज्योतिष के अनुसार उनकी मृत्यु हो सकती थी। इस कारण माता पिता व पुत्र सदा अलग अलग रहे। -मन मोहन कुमार आर्य

    • विजय कुमार सिंघल

      इससे मिलता-जुलता उल्लेख महाभारत में भी है. जब दुर्योधन पैदा हुआ था तो विदुर जी तथा अन्य ज्योतिषियों ने कहा था कि यह शिशु आगे चलकर वंश के विनाश का कारण बनेगा. उन्होंने ध्रतराष्ट्र को सलाह दी थी कि इसको त्याग दो. पर वह सलाह नहीं मानी गयी और कुरुवंश का विनाश उसी के कारण हुआ. इस बात का क्या स्पष्टीकरण हो सकता है?

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छा लेख. मैं इससे अक्षरशः सहमत हूँ. फलित ज्योतिष शुद्ध अन्धविश्वास और पाखंड है. ज्योतिषियों को स्वयं अपना भविष्य पता नहीं होता, दूसरों का क्या बताएँगे? आपने जो उदहारण दिए हैं, ऐसे अनेक उदाहरण है. कानपूर में पद्मेश नामके एक ज्योतिषी हैं, जो अख़बारों में खूब छपते हैं और दूसरों का भविष्य बताते हैं, पर उनको अपना भविष्य पता नहीं था कि उनकी बेटी किसी के साथ घर से भागने वाली है. जब यह घटना घट गयी तो उनका खूब मजाक बना. लेकिन अखबार वाले ने उनको छापना बंद नहीं किया. इस मूर्खता का क्या समाधान है?

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