गुस्ताख़ी
डरा स्याही का क़तरा हुआ
गम ए इश्क़ आ सीने से लग जा ज़रा
दिल को आघात बहुत गहरा हुआ
प्यार का महासागर सूख गया है
दूर दूर तक मंज़र अब सहरा हुआ
उन्हें इस बात की खबर ही नहीं हैं
बोलने का रूखा उनका लहज़ा हुआ
सजदा करने जाउँ तो किधर जाउँ
रुख़ उन्होने अब है अपना फेरा हुआ
फिर से अपना ले मुझे ऐ पाक नदी
साहिल पर तेरे हूँ अभी मैं ठहरा हुआ
गुस्ताख़ी हुई है मुझसे ज़रूर कोई न कोई
मान लो गुनाह मुझसे आज यह पहला हुआ
चाँद से रूठ गयी है चाँदनी फिर से
मालूम नही रौशन कब सवेरा हुआ
किशोर कुमार खोरेंद्र
(सहरा =रेगिस्तान ,रुख़ =चेहरा ,सजदा =माथा टेकना साहिल =किनारा गुस्ताख़ी = ग़लती )