कविता

ताँका

=
1
बेदर्दी शीत
विग्रही गिरी हारे
व्याकुल होता
विकंपन झेलता
ओढ़े हिम की घुग्घी।
2
शीत की सरि
प्रीत बरसाती स्त्री
फिरोजा होती
ड्योढ़ी सजी ममता
अंक नाश समेटे।
3
हिम का झब्बा
काढ़े शीत कशीदा
भू शादी जोड़ा
हर्षित है भुवन
कोप रवि का मिटा।

=रेशम ,कलाबत्तू के तारों का गुच्छा = झब्बा
silk and silver or gold thread twisted together
=

*विभा रानी श्रीवास्तव

"शिव का शिवत्व विष को धारण करने में है" शिव हूँ या नहीं हूँ लेकिन माँ हूँ

One thought on “ताँका

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छे तांका !

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