हीरे का नग
तुम मुझसे हो अलग रहे हो
बेवफा से क्यों लग रहे हो
कहे थे कई जन्मों तक साथ रहोगे
फिर मुझसे दूर क्यों भग रहे हो
मेरा गुनाह क्या है बता दो ज़रा
मुझे याद कर क्यों जग रहे हो
तेरे दर पर दीये सा जलता रहा
मेरी इबादत को क्यों ठग रहे हो
कविता नज़्म ग़ज़ल किस पर लिखूंगा
तुम तो मेरी शायरी में हीरे का नग रहे हो
किशोर कुमार खोरेंद्र
कविता नज़्म ग़ज़ल किस पर लिखूंगा
तुम तो मेरी शायरी में हीरे का नग रहे हो
वाह वाह! बहुत ही सुन्दर!
shukriya javahar lal sinh ji
अच्छी कविता !
shukriya vijay ji