लौ
जीने के लिए तुम्हें याद करता हूँ
गम ए जाना से फर्याद करता हूँ
तन्हा ही जलता हैं अंधेरें में चराग़
तन्हाई में लौ सा तुमसे संवाद करता हूँ
सफ़ीना कोई एक डूबने को है
भव सागर से प्रतिवाद करता हूँ
उलझ गयी हैं तितलिया काँटों में
अंतरात्मा से वाद विवाद करता हूँ
खिलते है जब ह्रदय में अनुराग के कमल
शबनमी मौन का कविता में अनुवाद करता हूँ
किशोर कुमार खोरेंद्र
एक और अच्छी कविता.
shukriya vijay ji