उड़ान
अजनबी हो फिर भी मुझसे एक रिश्ता है
तेरे मेरे बीच अनाम सा एक रिश्ता है
मुहब्बत ,प्यार ,वफ़ा ए इश्क हो यदि
तो कतरे में सागर भी आ बसता है
इस जहाँ का मकसद मैने जान लिया
कुर्वत के लिए इर्फान भी तरसता है
वो एक शख़्स क्यों रोज रोज लिखता है
चाहत की झील मे आब ए हर्फ रीसता है
जंगल में खामोशी की चिड़ियाँ चुपचाप बैठी है
उड़ान भी आकाश सी तन्हाई को समझता है
किशोर कुमार खोरेंद्र
(कुर्वत= सामीप्य ,इर्फान=विवेक ,ज्ञान ,मकसद =उद्देश्य ,आब =जल हरफ़ =अक्षर ,कतरा =बूँद
वफ़ा=वफ़ादारी )
अच्छी कविता. एक शब्द के अर्थ पर मुझे संदेह है. मेरी जानकारी के अनुसार ‘कुर्बत’ का अर्थ ‘सामीप्य’ नहीं, ‘दूरी’ होता है. कृपया जांच करें.