”यादों का तन्हा रहना”
वक्त से एक लम्हा चुराकर
जब मैं सोचती हूँ तुम्हें
विस्मृतियों के पार
मुझसे होकर गुजरती है तुम्हारी
हर याद ……
मेरे मन के कोने से
दिखते हैं तुम्हारे हर जज्बात
तुम्हारे हर लफ्ज से बनती है एक कविता
जो मेरी भावनाओं से मेल खाती हैं
मैं तैयार हूँ,तुम्हारे हर कविताओं में
रंग भरने के लिए
मगर
डरती हूँ मेरी ख़ामोशी से
हर रोज तलाशती हूँ खुद को
खुद से ……
और कभी नाकाम होकर
उकेरती हूँ बीते हुए मंजर
खोजती हूँ तुम्हारे कविताओं में
लिपटे हुए वो शब्द ,
काश तुम लौट आओ कभी ,
क्योंकि तुम जानते हो
सर्द मौसम में कितना मुश्किल है यूँ
यादों का तन्हा रहना ……..!!!
— संगीता सिंह ”भावना”
बहुत खूब !