फूल
तुम कहते हो सारे फूल अच्छे लगते हैं
तेरे जुड़े में गुलाब के फूल अच्छे लगते हैं
तुम्हारी नीयत पर मुझे कोई गुमान नही है
तुम्हे मुझसे हुऐ शरारती भूल अच्छे लगते हैं
उस पार कोहरे से घिरे तुम, जब नज़र आते हो
बीच में गहरी नदी और उँचे पुल अच्छे लगते हैं
गमले में रोप कर जिन जिन पौधों को तुम गये हो
उन पौधों की शाखों में खिले गुल अच्छे लगते हैं
जिस राह पर तुम्हारे पैरों के निशान अंकित हैं
उस पगडंडी के मुलायम धूल अच्छे लगते हैं
किशोर कुमार खोरेंद्र
बहुत बढियाँ
बहुत अच्छी ग़ज़ल !
अच्छी कविता .