कभी न ख़त्म होने वाली देश में छुआ छूत की भावना
एक तरफ देश आधुनिकता और तरक्की की उचाइयां छुने को बेताब है, समानता की बाते की जाती है, शिक्षित होने का दंभ भरा जाता है परन्तु दूसरी तरफ देशवासियों की मानसिकता अब भी सड़ी-गली है ।
जो छुआ-छूत ,जातिवाद की मानसिकता से भयंकर ग्रसित है ।
अंग्रेजी अख़बार इन्डियन एक्सप्रेस ने अपने संस्करण में छापा है की नैशनल काउंसिल ऑफ अप्लाईड इकनॉमिक रीसर्च (NCAER) और अमेरिका की मैरिलैंड यूनिवर्सिटी ने एक अध्ययन में पाया कि हर चौथा भारतीय छुआछूत को मानता है। छुआछूत मानने वालों में हर धर्म और जाति के लोग शामिल हैं।
सर्वे करने वाली संस्थाओं ने भारत के लगभग 42000 घरो का सर्वे किया और इसमें लोगो से सवाल पूछा गया की क्या वे अनुसूचित जाति( दलित) से छुआ-छूत को मानते हैं?
27 % लोगो ने हाँ में जबाब दिया जिसमे की सबसे अधिक ब्राह्मण जाति के थे अर्थात 52% ब्राह्मणों ने कहा की वे दलितों से छुआ-छूत रखते हैं ।उसके बाद और सवर्ण जातियां थी पर इसमें यह भी बताया गया की obc जाति के लोग भी दलितों से छुआ-छूत को मानते हैं , छुआ-छूत मनाने वाले गैर ब्राह्मणों की संख्या 24% है।
पर यंहा गौर करने वाली बात यह है की दलितों से छुआ-छूत की भावना रखने वाले सिर्फ हिन्दू ही नहीं बल्कि सिख, जैन भी हैं।
इन संस्थाओ की रिपोर्ट अभी पूरी तरह से आई नहीं 2015 तक पूरी रिपोर्ट आ जाने की सम्भावना है तब छुआ-छूत की मानसिकता से ग्रसित लोगो की संख्या इससे दुगनी भी हो सकती है अर्थात यह आंकड़ा 50% तक हो सकता है । कितने शर्म की बात है की भारत में हर दूसरा व्यक्ति दलितों के प्रति छुआ-छूत जैसी अमानवीय मानसिकता रखता है, जिसमे वे धर्म भी शामिल हैं जो कहते हैं की हमारे धर्म में जातिवाद नहीं है ।
इस देश में दलितों को कभी इन्सान समझा ही नहीं गया बल्कि उनके साथ जाति के कारण पशुओं जैसा ब्यवहार ही किया गया आज भी इन आंकड़ो से कमोवेश वही स्थिति दिखाई देती है ।
देशी की कोई भी तरक्की झूठी होगी यदि देश के लोगो की मानसिकता छुआ-छूत से मुक्त नहीं हो पाई तो पर ऐसा आने वाले सालो में हो पायेगा इसकी संभवना कम ही दिखती है क्यों की इस देश के लोगो के लिए लोकपाल काला धन जैसे मुद्दे महत्वपूर्ण हो सकते है और उनके लिए देशव्यापी अन्दोलान कर सकते हैं पर जातिवाद, छुआ-छूत ख़त्म करने के मुद्दे उनके लिए अर्थहीन हैं और इन्हें ख़त्म करने के लिए आन्दोलन की जरुरत नहीं समझते।
समाज में छुआछूत
और जातिवाद की
मानसिकता का कारण
अशिक्षा और कुसंस्कार
हैं। यदि शिक्षित
मनुष्य छुआछूत का बर्ताव
करते हैं तो
इसका अर्थ है
कि हमारी शिक्षा
पद्धति दोषपूर्ण है। शिक्षा
में सुधार की
आवश्यकता है। जो
शिक्षा छुआछूत और जातिवाद
को समाप्त नहीं
कर सकती, इसका
कारण उस शिक्षा
में ही कमियां
है और उन
कमियों को दूर
करने की आवश्यकता
है। छुआछूत के
विरूद्ध स्वामी श्रद्धानन्द ने
प्रभावशाली कार्य किया था।
उन्होंने दिसम्बर, 1919 में अमृतसर
के कांग्रेस अधिवेशन
तथा उसके बाद
नागपुर अधिवेशन में प्रस्ताव
किया था कि
अस्पर्शयता दूर करने
का कार्य कांग्रेस
को अपने हाथ
में लेना चाहिये।
परन्तु इसमें वह सफल
नहीं हो सके
थे। बाद में
उन्होंने कांग्रेस से त्याग
पत्र दे दिया
था। इसके अतिरिक्त
भी उन्होंने दलितोद्धार
सभा तथा अछूतोद्धार
सभा बनाई और
और छुआछूत को
समाप्त करने का
पूरा प्रयास किया।
उन्होंने सन् 1902 में स्थापित
अपने समय की
प्रमुख राष्ट्रीय संस्था गुरूकुल
कांगड़ी में जातिवाद
से ऊपर उठकर
शिक्षा के दरवाजे
सबके लिए खोले
थे। अपनी सभी
सन्तानों के विवाह
भी उन्होंने जाति
प्रथा से पृथक
अन्य-अन्य जन्मना
जातियों में किए
थे। मिस्टर गांधी
को “महात्मा” का
सम्बोधन व उपाधि
उन्होंने ही दक्षिण
अफ्रीका से गुरूकुल
पधारने पर दी
थी। महात्मा गांधी
उनकों अपना बड़ा
भाई मानते थे।
इंग्लैण्ड के प्रधानमंत्री
रैम्जे मैकडानल ने गुरूकुल
आकर स्वामी श्रद्धानन्द
के साथ कुछ
दिन निवास किया
और अपने संस्मरणों
में उन्हें जीवित
ईसामसीह और सेंट
पीटर कहा था।
जतिवाद का प्रयोग
करने का स्थान
मनुष्य के मन
में होता है।
यदि प्रचार द्वारा
बार-बार यह
बताया जाये कि
ईश्वर व धर्म
दोनों ही अस्पर्शयता
को बुरा मानते
हैं और अस्पर्शयता
का जीवन में
व्यवहार करना ईश्वर
की दृष्टि में
दण्डनीय होता है
तभी यह बुराई
कम व समाप्त
हो सकती है।
वेदों के अनुसार
तो छुआछुत का
व्यवहार करना ईश्वर
द्वारा दण्डनीय सिद्ध होता
है। आर्य समाज
में एक स्वामी अद्भुतानन्द सरस्वती हुए
हैं। वह दलित
वर्ग में हुए
और आर्य समाज
के अनुयायियों के
पूज्य बने। पंजाब
व निकटवर्ती प्रदेश
उनकी कर्मभूमि रहे।
उन पर एक
लेख आगामी दो
तीनों में प्रेषित
करने का प्रयास
है।
केशव जी, आपका लेख ठीक है. आंकड़े भी सही हैं. लेकिन…. और यह लेकिन बहुत बड़ा है… आपकी मानसिकता बहुत नकारात्मक है. बजाय इस बात पर जोर देने के कि ५२% ब्राह्मण अभी भी छुआछूत को मानते हैं, आपको कहना चाहिए था कि ४८% ब्राह्मण अब छुआछूत को नहीं मानते. इसी तरह ७६% गैर ब्राह्मण भी छुआछूत को नहीं मानते यह एक सकारात्मक लक्षण है. सदियों की मानसिकता कुछ ही दिनों या वर्षों में पूरी तरह नहीं बदल सकती. यह एक लम्बी और सतत चलने वाली प्रक्रिया है. एक समय था जब १००% ब्राह्मण और गैर ब्राह्मण छुआछूत मानते थे. यह संख्या बहुत घट गयी है, यह बहुत प्रसन्नता और संतोष की बात है. आगे और भी सुधार होगा, ऐसी आशा रखनी चाहिए.
केशव भाई , छुआ छात एक ऐसी बात है जो एक कैंसर है . दुःख भरी बात यह है कि सिख धर्म का बेस ही जात पात को दूर करके एक इन्सानिअत का धर्म बनाना था , यही वजह थी सिखों के दसवें गुरु ने जब पांच पिआरे सीलैक्त किये थे तो सभी नीची जात से ही चुने थे . लेकिन दुःख की बात यह है कि अभी तक इस चुंगल से निकल नहीं सके . यहाँ दलित लोगों ने बहुत उन्ती की है , मेरा एक दोस्त था , उस से बातें अक्सर होती रहती थी . वोह बोला करता था , भमरा जी ! हमें यहाँ आ कर पता चला कि आजादी किया होती है . अब दलितों की फैक्ट्रीओं में ऊंची जात वाले काम करते हैं लेकिन कोई नफरत नहीं है , सभी एक जैसे हैं , और अब तो दलितों के बच्चे ऊंची जात के बच्चों से शादीआं कर रहे हैं . लेकिन एक बात है कि भारती लोग सदिओं से इस जात पात की प्रथा से नुक्सान करा रहे हैं लेकिन कोई संत महात्मा इस कोहड को दूर करने की कोशिश नहीं करता .
भाईसाहब, यह बीमारी केवल किसी संत महात्मा के कहने से नहीं, बल्कि हम सबके करने से दूर होगी.