कहानी

कहानी : फर्ज

ट्रिन-ट्रिन अचानक फोन की घंटी घनघना उठी,पीहू ने फोन उठाया सामने से बेटे रंजन की आवाज आई- ”ममा, मै ,कल आ रहा हूँ;मेरा दीक्षांत समारोह सम्पन हो गया,अब मै आपके साथ कुछ दिन तो आराम से मस्ती करूंगा|’ उसने सब एक साँस मे बोल कर फोन कट कर दिया; पीहू कुछ बोलने का मौका ही नहीं दिया|

पीहू और वरुण का बेटा रंजन जो सरदार पटेल मेडिकल कॉलेज मे ऍम.बी .बी .एस .कर रहा था | पीहू आज रंजन के आने की खबर सुनकर बहुत खुश हो रही थी| इतने सालो बाद उसका राज दुलारा घर लौट रहा था| अभी से उसकी पसंद का खाना बनाने के बारे मे सोचने लगी;रंजन को मुंग की दाल का हलुवा मेरे हाथ का बना बहुत पसंद है| ”अरे ! मै अभी से उसकी पसंद के खाने के बारे मे सोचने लगी;पहले वरुण को तो बताऊ.  वरुण को फोन किया ”हेल्लो , वरुण कल शाम को रंजन आ रहा है.” वरुण तो ये खबर सुनकर उछल पड़ा,बोला ”अरे ! ये बहुत अच्छी खबर है;मै अपना काम जल्दी से खत्म करके अभी घर आ रहा हूँ|”

पिहू ने रामू को बुलाया ” मेरे लिए चाय लाओ.” ”जी मेम साहब , अभी लाया .” थोड़ी देर मे रामू चाय लेकर आया ,”मेम साहब चाय .” पीहू चाय पीकर पलंग पर तकिये के सहारे लेट कर कुछ देर आराम करने के लिए बैठ गयी| आज फिर पिहू को रंजन के जन्म के समय की सभी यादे चल-चित्र की तरह एक-एक कर याद् आने लगी|

”आप माँ बनने वाली है,पीहू .” डॉ ने जब कहा उस वक्त ह्मारी ख़ुशी का कोई पारावार नहीं था| डॉ. ने मुझे चेकअप के बाद कुछ दवाई और सलाह दी.हम घर आ गये| वरुण शादी के तुरंत बाद ही बच्चा नहीं चाहते थे |मेरी ”राजस्थान जुडिसियल सर्विस” परीक्षा की तैयारी चल रही थी| वरुण चाहते थे की मै,अपनी पढाई पूरी करु;मैं मन लगाकर अपनी पढाई कर रही थी|

बस कुछ ही समय बचा था,परीक्षा होने मे,अचानक अख़बार दवारा सुचना आई, किसी कारण  से अब ये परीक्षा की डेट रद्द की जाती है| वरुण ने फिर परिवार पूरा करने का फैसला लिया;शादी को तीन साल हो गये थे,ससुराल वाले तो शादी होने के कुछ वक्त बाद ही अपने पोते-पोती के लिए आस लगा कर बैठ गये थे….पर वरुण इस बारे मे किसी की भी नहीं सुनता था|

वरुण मारुती कार उद्योग मे सी.ई.ओ.था|उसे अक्सर मिटिंग के किये शहर से बाहर जाना पड़ता था; कई बार विदेशी दौरे पर भी जाना पड़ता था| वरुण ने घर के तमाम काम करने के लिए एक बाई रख ली थी; डॉ. ने मुझे बेडरेस्ट करने के लिए बोला था| कुछ समय बाद वरुण ने अपने डायरेक्टर से कह कर अपने टूर कैंसिल करवाकर ऑफिस मे ही ड्यूटी करने की इजाजत ले ली थी| मुझे हर पन्द्रह दिन बाद अस्पताल चेकअप के लिए जाना पड़ता था| समय अपनी गति से चल रहा था |

उस वक्त वरुण घर मे ही थे,”’वरुण. “मै जोर से चिल्लाई,मुझे अचानक दर्द होने लगा| अभी कुछ दिन पहले ही डॉ. के पास जाकर आये है| मुझे ‘लेबर पैन’ होने शुरू हो गये थे; अभी तो सातवा महिना ही चल रहा था की ये पैन ! हम दोनों ही घबरा गये डॉ.के पास जाते ही मेरा ट्रीटमेंट चालू हुआ,डॉ. ने वरुण को बताया”बच्चा अभी निकालना पड़ेगा,नहीं तो पीहू को नुकसान हो सकता है|, वरुण के पास हाँ बोलने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था|

वरुण ने अपने परिवार वालो को इस बारे मे फोन से सुचना कर आने का बोल दिया| डॉ. ने ओपरेट करके बच्चे को निकाल दिया| डॉ. ने वरुण से कहा ”बहुत महंगा इलाज है,बहुत पैसे लगेंगे,|” वरुण के कहा- “डॉ. अपने बच्चे को बचाने के लिए मै कुछ भी करूँगा, आप इलाज शुरू कीजिये, पैसे की परवाह मुझे नहीं है|’और उसने ऐसा किया भी|

प्री-मेस्चौर बच्चा था, तो उसे करीब दो माह अस्पताल के आई,सी.यु . कक्ष मे डॉ.की देख-रेख मे रखना पड़ा | इसी दौरान डॉ ,के सामने रोज एक नई समस्या आ खड़ी होती थी| पर ना तो वो कभी हिम्मत हारे ,और ना हमे कभी हमे निराश होने दिया| भगवान का भरोसा पूरा था| अपने बच्चे से इतने समय तक अलग रहना मेरे लिए बहुत मुश्किल था|  साथ ही हर दिन एक नई आशंका से घिरा आता था , किसी अनिष्ट की आशंका से घिरे वो एक-एक दिन निकालना बहुत ही मुश्किल था | वो घर आया तो भी उसे पालना मेरे अकेली के बस का नहीं था; पुरे परिवार ने मेरा साथ दिया| वो समय निकालना मेरे लिए बहुत मुश्किल था| और उन्ही दिनों हम दोनों ने सोच लिया था कि हम अपने बेटे रंजन को डॉ. बनायेगे, चाइल्ड स्पेस्लिस्ट बनायेगे | उस वक्त डॉ.हमारे लिए भगवान से कम नहीं थे| डॉ.के ही अथक प्रयास से हमारे बच्चे को बचाया जा सका था|

रंजन ने जब स्कूल की पढाई पूरी की तभी हमने उसे अपनी इच्छा के बारे मे बताया, ”रंजन मैंने और वरुण ने तुम्हे डॉ.बनाने के बारे मे सोचा है,क्या तुम हमारी ये इच्छा पूरी करोगे ?,मैंने रंजन से कहा | रंजन ने हमारा मान रखते हए, हमारी इच्छा को अपना कर्तव्य समझते हुए पूरी करने के लिए हाँ कहा और जी-जान से मेहनत  करने लगा|और आज उसने डॉ .बनकर हमारी वो इच्छा पूरी की| सोचते-सोचते कब शाम हो गयी पता ही नहीं चलता, वरुण आ गये थे | वरुण के आते ही घर मे रौनक आ जाती थी| वो आते ही खुद मेरे लिए चाय बनाते थे|

”चलो जल्दी से तैयार हो जाओ,शौपिंग के लिए,रंजन के पसंद की बहुत सी चीजे लानी है|,वरुण ने कहा| हम दोनों ने रामू के साथ मिलकर अपने घर को सजाया, आज हमारा राजदुलारा डॉ. बनकर जो आ रहा था | रंजन समाज सेवा कर के अपना फर्ज अदा करना चाहता था |

— शांति पुरोहित |

शान्ति पुरोहित

निज आनंद के लिए लिखती हूँ जो भी शब्द गढ़ लेती हूँ कागज पर उतार कर आपके समक्ष रख देती हूँ

6 thoughts on “कहानी : फर्ज

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छी लघुकथा !

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    कहानी अच्छी लगी . अगर हर एक की जिंदगी हैपी एंडिंग हो जाए तो फिर और स्वर्ग की किया जरुरत है . इस कहानी से मुझे मेरी माँ याद आ गई .

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    बहुत सुंदर कहानी सीपी

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