कविता

पल भरमे ……..

पल भरमे ……..

हां बहुत कुछ हुआ
इस बीच
मुझे पटरिया
समझ कर

वक्त ,कई रेलों की तरह
मुझ पर से गुजर गया
फिर भी मै ज़िंदा हूँ

ताज्जुब है ….
कविता लिखने के लिये
फिर जीना
फिर मरना क्या जरूरी है ..?
अपनी सवेंदानाओ कों जानने के लिये
कभी बूंद भर अमृत
कभी प्याला भर जहर पीना क्या जरूरी है ..?

मुझ लिखे शब्दों कों
कलम की नीब
धार की तरह काटती गयी ….
मेरी पीड़ा
कों फिर वह नीब कहाँ .
शब्द दे पायी
बहुत कुछ सा -मै हर बार …
अनलिखा भी रह जाता हूँ
भावो का एक ज्वार था ……
जिसके उतरने पर ……..
मै अकेला ही था सुनसान किनारे पर
मेरे हाथ मे
मेरे आँसुओं से गीली रेत थी
और हर बार की तरह
मै शेष रह गया था

क्योकी
कविता बच ही जाती है
और ..और .लिखने के लिये
फिर -भी
चाँद मेरी व्यथा कों
समझ नही पाया था
मैंने उसकी किरणों से प्राथना की –
अब तो ..समझ जाए ……..वह

— किशोर कुमार खोरेंद्र

किशोर कुमार खोरेंद्र

परिचय - किशोर कुमार खोरेन्द्र जन्म तारीख -०७-१०-१९५४ शिक्षा - बी ए व्यवसाय - भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवृत एक अधिकारी रूचि- भ्रमण करना ,दोस्त बनाना , काव्य लेखन उपलब्धियाँ - बालार्क नामक कविता संग्रह का सह संपादन और विभिन्न काव्य संकलन की पुस्तकों में कविताओं को शामिल किया गया है add - t-58 sect- 01 extn awanti vihar RAIPUR ,C.G.

One thought on “पल भरमे ……..

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया !

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