लघुकथा : हूर बनने का खौफ
‘आज तुम्हे क्या हो गया है तहज़ीब।’ अपने सीने से चिपटी एक गोरी, छरहरी, कमसिन लड़की को अपने सीने से अलग करके अपने से पर लगभग धक्का देते हुए वो बोला।
ज़मीन पर पड़े कुछ लम्हे वो सिसकती रही और फिर तड़प कर उसके सीने से लगते हुए बोली – ‘आफ़ताब आज मैं एक लड़की होकर तुम्हारी इल्तिज़ा कर रही हूँ. मेरी दोशीज़गी को चूर चूर कर दो। हाँ आफ़ताब, आज मेरा कुंवारापन तोहफे में ले लो।’ इतना कह कर तहज़ीब, आफ़ताब के सीने में अपना चेहरा गड़ाये हुए फफक – फफक कर रो पड़ी।
कुछ देर उसे आंसू बहा लेने के बाद, उसके बाल सहलाते हुए आफ़ताब बोला – ‘तहज़ीब निकाह से पहले जिस्मानी तालुकात नाजायज़ हैं। और फिर तुम्ही तो कहा करती थी ‘ये सब शादी के बाद’ . ‘
‘हाँ आफ़ताब कोई भी लड़की अपना जिस्म सिर्फ शादी के बाद ही मर्द को सौपना चाहती है।’ तहज़ीब आफ़ताब का चेहरा देखते हुए कहे जा रही थी -‘ पर जानते हो वो कबायली दहशतगर्द गांव से कुछ ही दूर हैं जयादा से जयादा वो कल यहाँ आ धमकेंगे। वो हिन्दू – मुस्लमान का फ़र्क़ किये बिना हम लड़कियों का बेदर्दी से बलात्कार करेंगे। आफ़ताब मै बलात्कार होने से पहले मर जाना चाहती हूँ। और जानते हो मरने से पहले मैं अपना कुंवारापन इसलिए क़ुर्बान करना चाहती हूँ ताकि बेरहम दहशतगर्दो को मै जन्नत मे हूर की शक्ल में तोहफे में न मिलूं.’
तहज़ीब की बात सुनकर आफ़ताब ने तड़पकर उसका चेहरा देखा तो वहां उसे पहली बार किसी लड़की के चेहरे पर हूर बनने का खौफ नज़र आया।
सुधीर मौर्य
दिल को छू लेने वाली लघु कथा जो दहशतगर्द दरिंदों को धार्मिक होने के पाखण्ड को नंगा करती है .
जी सर लघुकथा पसंद करने के लिए आभार।
अच्छी लघुकथा. आपने आतंकवादी मानसिकता को अच्छी तरह प्रकट किया है.
आभार।