हाइबन
पहली हमारी कोशिश हाइबन लिखने की इधर आइये तो पढ़ अवश्य बताइए कैसी है यह अदना कोशिश ….आप सभी के इंतजार में मेरी यह रचना …:)
ओह कितनी खुबसुरत तस्वीरें है| काश मैं भी घूम पाती ! इस नाव में, पतवार मैं चलाती और तुम बैठते| जिन्दगी की नाव तो तुम्ही खे रहे हो न | पहाडियों पर चढ़ के तुम्हारा नाम पुकारती| सुनती हूँ, एक बार नाम बोलो तो कई बार गूंजता है| मैं पूरे फिज़ा में तेरे नाम की ही गूंज बसा देती|
समुद्र की शांत पड़े पानी में डूबते सूरज की अरुणाई को निहारती रहती| स्वर्णिम आभा को अपने हृदय में बसा लेती हमेशा-हमेशा के लिय| सब कहते है कि स्त्रियों को स्वर्ण बहुत पसंद है पर तुम तो जानते हो न मुझे बिल्कुल भी नहीं पसंद| पर यह स्वर्ण आभा मैं अपने अंदर बसा सबको अलानिया बताती कि देखो, मुझे भी स्वर्ण पसंद है| सच्चा स्वर्ण बिल्कुल ख़ालिस, कोई मिलावट नहीं |
और तो और एक टका भी न लगेगा इस स्वर्ण को अपने शरीर पर धारण करने पर |
ये सुन रहे हैं न या फिर मैं बके जा रही हूँ| हू हा सुन रहा हूँ!उहू तुम भी न कभी तो मेरी बातें भी सुन लिया करो, घूमा नहीं सकते तो ना सही|
अच्छा दीदी आप बताये आप तो घूम के आई है ???
क्या बताऊ सवित ! जितना तुम तस्वीर देख बयान कर दी, उतना तो हम वहां देखकर भी महसूस नहीकर पायें| हा थक जरुर गये घूमते घूमते| देखो पैरो में सूजन अब भी हैं|
अरे दी आप भी ध्यान से देखिये इन तस्वीरों को सारी थकान दूर हो जायेगी| कितनी खुबसुरत शानदार तस्वीरें आप और जेठजी ने खिंचवाई हैं| देखिये जरा गौर से …….
मन लुभाती
हरियाली बिखरी
कृति निखरी|
पक्षी बन मैं
प्रकृति छटा देखूं
मनु से दूर| …………..सविता मिश्रा
बेह्तरीन शुभकामनायें.
दिल से शुर्किया …
बढ़िया गद्य काव्य !
आभार भैया .सादर नमस्ते
बहुत अच्छी लगी .
दिल सी शुक्रिया भैया …………….सादर नमस्ते