कविता

हाइबन

पहली हमारी कोशिश हाइबन लिखने की इधर आइये तो पढ़ अवश्य बताइए कैसी है यह अदना कोशिश ….आप सभी के इंतजार में मेरी यह रचना …:)

ओह कितनी खुबसुरत तस्वीरें है| काश मैं भी घूम पाती ! इस नाव में, पतवार मैं चलाती और तुम बैठते| जिन्दगी की नाव तो तुम्ही खे रहे हो न | पहाडियों पर चढ़ के तुम्हारा नाम पुकारती| सुनती हूँ, एक बार नाम बोलो तो कई बार गूंजता है| मैं पूरे फिज़ा में तेरे नाम की ही गूंज बसा देती|
समुद्र की शांत पड़े पानी में डूबते सूरज की अरुणाई को निहारती रहती| स्वर्णिम आभा को अपने हृदय में बसा लेती हमेशा-हमेशा के लिय| सब कहते है कि स्त्रियों को स्वर्ण बहुत पसंद है पर तुम तो जानते हो न मुझे बिल्कुल भी नहीं पसंद| पर यह स्वर्ण आभा मैं अपने अंदर बसा सबको अलानिया बताती कि देखो, मुझे भी स्वर्ण पसंद है| सच्चा स्वर्ण बिल्कुल ख़ालिस, कोई मिलावट नहीं |
और तो और एक टका भी न लगेगा इस स्वर्ण को अपने शरीर पर धारण करने पर |
ये सुन रहे हैं न या फिर मैं बके जा रही हूँ| हू हा सुन रहा हूँ!उहू तुम भी न कभी तो मेरी बातें भी सुन लिया करो, घूमा नहीं सकते तो ना सही|
अच्छा दीदी आप बताये आप तो घूम के आई है ???
क्या बताऊ सवित ! जितना तुम तस्वीर देख बयान कर दी, उतना तो हम वहां देखकर भी महसूस नहीकर पायें| हा थक जरुर गये घूमते घूमते| देखो पैरो में सूजन अब भी हैं|
अरे दी आप भी ध्यान से देखिये इन तस्वीरों को सारी थकान दूर हो जायेगी| कितनी खुबसुरत शानदार तस्वीरें आप और जेठजी ने खिंचवाई हैं| देखिये जरा गौर से …….
मन लुभाती
हरियाली बिखरी
कृति निखरी|

पक्षी बन मैं
प्रकृति छटा देखूं
मनु से दूर| …………..सविता मिश्रा

*सविता मिश्रा

श्रीमती हीरा देवी और पिता श्री शेषमणि तिवारी की चार बेटो में अकेली बिटिया हैं हम | पिता की पुलिस की नौकरी के कारन बंजारों की तरह भटकना पड़ा | अंत में इलाहाबाद में स्थायी निवास बना | अब वर्तमान में आगरा में अपना पड़ाव हैं क्योकि पति देवेन्द्र नाथ मिश्र भी उसी विभाग से सम्बध्द हैं | हम साधारण गृहणी हैं जो मन में भाव घुमड़ते है उन्हें कलम बद्द्ध कर लेते है| क्योकि वह विचार जब तक बोले, लिखे ना दिमाग में उथलपुथल मचाते रहते हैं | बस कह लीजिये लिखना हमारा शौक है| जहाँ तक याद है कक्षा ६-७ से लिखना आरम्भ हुआ ...पर शादी के बाद पति के कहने पर सारे ढूढ कर एक डायरी में लिखे | बीच में दस साल लगभग लिखना छोड़ भी दिए थे क्योकि बच्चे और पति में ही समय खो सा गया था | पहली कविता पति जहाँ नौकरी करते थे वहीं की पत्रिका में छपी| छपने पर लगा सच में कलम चलती है तो थोड़ा और लिखने के प्रति सचेत हो गये थे| दूबारा लेखनी पकड़ने में सबसे बड़ा योगदान फेसबुक का हैं| फिर यहाँ कई पत्रिका -बेब पत्रिका अंजुम, करुणावती, युवा सुघोष, इण्डिया हेल्पलाइन, मनमीत, रचनाकार और अवधि समाचार में छपा....|

6 thoughts on “हाइबन

Comments are closed.