कविता

कुण्डलिया छंद

(1)

गंगा मात्र नदी नहीं, समझे इसका सार
गंगा माँ को मानते जीवन का आधार |
जीवन का आधार, इसी से भाग्य जगा है
कूड़ा कचरा डाल, मनुज ने किया दगा है
कह लक्ष्मण कविराय, रहोगे तन से चंगा
धोते सारे पाप, रखे क्यों मैली गंगा ||

(2)
गंगा तट निर्मल करों,,भली करेंगे नाथ,
स्वच्छ धरा सुंदर लगे, खुशबू बिखरे पाथ
खुशबू बिखरे पाथ, सुगम तब राहे बनती
लक्ष्मी का आवास, धान्य से घर को भरती
लक्ष्मण रहना स्वच्छ, तभी तन रहता चंगा
करते वह अपराध, करे जो मैली गंगा |

(3)
अखण्ड भारत रह सके, जब हो सकल प्रयास

युवा शक्ति में जोश हो, जगा सके विश्वास |

जगा सके विश्वास, तभी सहयोग मिलेगा

करे सभी सल्कल्प तभी अब काम चलेगा |

लक्ष्मण करो उपाय, दुश्मन करे न शरारत

जब तक सूरज चाँद, रहे ये अखंड भारत ||

लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला

जयपुर में 19 -11-1945 जन्म, एम् कॉम, DCWA, कंपनी सचिव (inter) तक शिक्षा अग्रगामी (मासिक),का सह-सम्पादक (1975 से 1978), निराला समाज (त्रैमासिक) 1978 से 1990 तक बाबूजी का भारत मित्र, नव्या, अखंड भारत(त्रैमासिक), साहित्य रागिनी, राजस्थान पत्रिका (दैनिक) आदि पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित, ओपन बुक्स ऑन लाइन, कविता लोक, आदि वेब मंचों द्वारा सामानित साहत्य - दोहे, कुण्डलिया छंद, गीत, कविताए, कहानिया और लघु कथाओं का अनवरत लेखन email- [email protected] पता - कृष्णा साकेत, 165, गंगोत्री नगर, गोपालपूरा, टोंक रोड, जयपुर -302018 (राजस्थान)