कुण्डलिया छंद
(1)
गंगा मात्र नदी नहीं, समझे इसका सार
गंगा माँ को मानते जीवन का आधार |
जीवन का आधार, इसी से भाग्य जगा है
कूड़ा कचरा डाल, मनुज ने किया दगा है
कह लक्ष्मण कविराय, रहोगे तन से चंगा
धोते सारे पाप, रखे क्यों मैली गंगा ||
(2)
गंगा तट निर्मल करों,,भली करेंगे नाथ,
स्वच्छ धरा सुंदर लगे, खुशबू बिखरे पाथ
खुशबू बिखरे पाथ, सुगम तब राहे बनती
लक्ष्मी का आवास, धान्य से घर को भरती
लक्ष्मण रहना स्वच्छ, तभी तन रहता चंगा
करते वह अपराध, करे जो मैली गंगा |
(3)
अखण्ड भारत रह सके, जब हो सकल प्रयास
युवा शक्ति में जोश हो, जगा सके विश्वास |
जगा सके विश्वास, तभी सहयोग मिलेगा
करे सभी सल्कल्प तभी अब काम चलेगा |
लक्ष्मण करो उपाय, दुश्मन करे न शरारत
जब तक सूरज चाँद, रहे ये अखंड भारत ||