तेरी जुदाई को…
तेरी जुदाई को सहना अब आसान नहीं है
मेरी आपबीती का तुझे अनुमान नहीं है
साये की तरह तेरे संग मैं चलता आया हूँ
मेरे खुलूश का और कोई अरमान नही है
जबसे तुम गये हो मुझे तन्हा छोड़कर
मेरे लबों पर पहले जैसी मुस्कान नहीं है
जश्ने बहार आया नही ,पतझड़ गया नहीं
इंद्रधनुष से सजा रंगीन आसमान नही है
तेरी याद में मैं चराग़ सा रोज जल रहा हूँ
उसकी लौ में तेरे न होने का गुमान नही है
परिंदा ए सूकूत़ सा झील के किनारे बैठा हूँ
मेरे परों के ख्वाब में पर वो उड़ान नहीं है
लफ़्ज़ों में अपने दर्द को कैसे बयाँ करूँ
ऐसी दास्ताँ हूँ जिसका उनवान नहीं है
तूने भी तो मुझसे बेहद मोहब्बत की है
मेरी हालत से तू भी तो अंजान नहीं है
किशोर कुमार खोरेंद्र
(जुदाई =वियोग ,खुलूश =निष्कपटता, अरमान = इच्छा ,तन्हा =अकेला , जश्ने बहार =बसंत उत्सव , गुमान =भर्म
सूकूत़= मौन ,लफ़्ज =शब्द ,बयाँ=इज़हार ,दास्तान=कहानी ,उनवान = शीर्षक )
अच्छी ग़ज़ल !
ग़ज़ल गाने में बहुत मज़ा आएगा . खियाल गहरे हैं .
बहुत सुंदर
shukriya madan mohan saksena ji