हर घड़ी तेरा…
हर घड़ी तेरा मैं बेसब्री से इंतजार करता हूँ
तू आये न आये पर तुझपे ऐतबार करता हूँ
तू कौन हैं तेरा नाम है क्या मुझे मालूम नही
इब्तिदा से तुझसे मैं बेइंतहा प्यार करता हूँ
साहिले वस्ल इस जहाँ में कहीं पर तो होगा
सागरे हिज्र को तन्हा कश्ती सा पार करता हूँ
कोहरे के आँचल सा मेरे हाथों से फिसल जाते हो
खत या नज़्म लिखकर प्रेम का इज़हार करता हूँ
उदगम से नदी सी उतरती हुई लगती हो तुम
मैं तेरा पीछा तेरे प्रवाह के अनुसार करता हूँ
मन में ख्ववाहिशों की भीषण लहरे उठती हैं
एहतिजार पर तेरे शालीन व्यवहार करता हूँ
बर्फ से ढकें पर्वत के शिखर पर है एक मंदिर
परचम ,स्वर्ण कलश ,सा तेरा दीदार करता हूँ
अहले जुनूँ की लहर सी तुझे भी मेरी तलाश होगी
ख्वाबो ख्याल में इसलिए तुझे स्वीकार करता हूँ
किशोर कुमार खोरेंद्र
(इब्तिदा=शुरू से ,साहिले वस्ल=मिलन का किनारा ,सागरे हिज्र =विरह का सागर,
एहतिजार= सामने आना , अहले जुनूँ=जुनून रखने वाला )
अच्छी ग़ज़ल !
shukriya vijay ji
sundar gazal
gunjan agrawal ji shukriya