क्या लड़का होना गुनाह है?
मेरे एक मित्र ने व्हाट्स अप पर एक वीडियो भेजा है जिसमें एक छोटी सी घटना के माध्यम से पुरुष और स्त्री की मानसिकता को दर्शाया गया है — एक मेट्रो शहर में एक लड़की आधुनिक परिधान में बस के इन्तज़ार में खड़ी है। उसके पीछे एक अधेड़ आदमी हाथ में छड़ी लिये धीरे-धीरे चलते हुए आता है। उसकी आंखों पर गहरे काले रंग का धूप का चश्मा है। छड़ी से रास्ता टटोलता वह आगे बढ़ रहा है। रास्ता ढूंढ़ने के चक्कर में उसकी छड़ी का स्पर्श अधुनिका लड़की के कटि के नीचे पृष्ठ भाग से हो जाता है। लड़की क्रोध से पीछे की ओर मुड़ती है और चिल्लाते हुए अधेड़ आदमी को पीटना चालू कर देती है। आसपास के लोग भी लड़की का साथ देते हैं और अपना हाथ साफ कर लेते हैं। इस मारपीट में अधेड़ का चश्मा गिर जाता है। वह नीचे बैठकर टटोलते हुए अपने चश्मे को ढूंढ़ने की कोशिश करता है, तब लोगों को पता चलता है कि वह अन्धा है। एक किशोर उसका चश्मा ढूंढ़ लेता है और भीड़ के दुर्व्यवहार के लिए माफ़ी मांगते हुए उसे फिए से चश्मा पहना देता है। लड़की खड़ी सब देख रही होती है लेकिन माफ़ी नहीं मांगती है।
अधेड़ अन्धा उसी फ़ुटपाथ पर आगे बढ़ता है। कुछ लड़के समूह में गोलगप्पा खा रहे हैं। रास्ते की तलाश में अन्धे की छड़ी का स्पर्श पुनः एक लड़के के कटि के नीचे के पृष्ठ भाग से होता है। लड़का पीछे मुड़कर पूछता है – “दिखाई नहीं पड़ रहा है क्या?” “नहीं बेटा, मुझे दिखाई नहीं देता। मैं अन्धा हूं। जानबूझकर मैंने तुम्हें नहीं छुआ है। मुझे मारना मत।” लड़के ने सहानुभूति दर्शाते हुए उसका हाथ पकड़ा और गन्तव्य स्थान का नाम पूछा। अन्धे को सड़क पार करनी थी। लड़के ने अपने मित्र की सहायता से अन्धे को सड़क के उस पार पहुंचाया।
वीडियो सिर्फ़ ३ मिनट का था लेकिन पुरुष और स्त्री की मानसिकता के विषय में बहुत कुछ कह गया था।
दो दिन पहले रोहतक जाने वाली बस में सवार दो लड़कियों ने छेड़खानी के आरोप में तीन लड़कों की पिटाई की थी। सारे अखबारों और टीवी चैनलों ने लड़कियों की बहादुरी के गुणगान में हिन्दी-अंग्रेजी के सारे शब्द इस्तेमाल किये। सभी राजनीतिक पार्टियों की महिला नेत्रियों ने उन कथित मनचलों की जी भरके निन्दा की। हरियाणा की सरकार ने दोनों लड़कियों को गणतन्त्र दिवस पर पुरस्कृत करने की घोषणा भी कर दी। घटना के ४८ घन्टों के अन्दर विभिन्न एन.जी.ओ. में लड़कियों को नकद पुरस्कार देने की होड़-सी लग गई। तभी कहानी में नया ट्वीस्ट आया। बस में सवार प्रत्यक्षदर्शी महिलाओं ने थाने में जाकर बताया कि लड़के निर्दोष थे। उन्होंने लड़कियों को नहीं छेड़ा था। लड़कियां एक गर्भवती महिला की सीट पर जबर्दस्ती बैठी थीं। लड़कों ने लड़कियों से सीट खाली करने को कहा था। इसी बात पर झड़प हुई और एक लड़की ने बेल्ट निकाल कर लड़के को पीटना चालू कर दिया। लड़कों का चुनाव सेना के लिये हो गया था। वे तन्दरुस्त और अच्छी कद-काठी के थे। वे तीन लड़के चाहते तो लड़कियों की बुरी तरह पिटाई कर सकते थे। लेकिन जैसा वीडियो में स्पष्ट है, उन्होंने लड़कियों पर हाथ नहीं उठाया।
आज दिनांक ४ दिसंबर को सायं ६ बजे जी-न्युज ने दोनों लड़कियों और घटना में शामिल दो लड़कों का लाइव डिबेट कराया। एंकर और लड़कों के एक भी सवाल का लड़कियां उत्तर नहीं दे पाईं। एंकर भी एक महिला ही थीं। वे बहुत संयम से प्रश्न पूछ रही थीं ताकि सच सामने आ जाय। लड़कियां जवाब देने के बदले उद्दण्डता पर उतर आईं और डिबेट के मध्य में ही अनाप-शनाप बोलते हुए चली गईं। हरियाणा सरकार ने पूजा और आरती को सम्मानित करने का फ़ैसला स्थगित कर दिया है। एक अन्य लड़के की पिटाई करते हुए उन्हीं लड़कियों का एक और वीडियो जारी हुआ है। अमूमन अगर लड़की किसी लड़के पर छेड़खानी का आरोप लगाते हुए किसी लड़के से उलझती है, तो भीड़ लड़के का पक्ष सुने बिना लड़के की धुनाई कर देती है। लेकिन उस बस में एक भी पुरु्ष-महिला यात्री या चालक-कन्डक्टर लड़कियों के पक्ष में खड़ा नहीं हुआ।
अब सच कुछ-कुछ सामने आ रहा है। लेकिन एक प्रश्न अभी भी अनुत्तरित है – क्या लड़का होना गुनाह है?
बहुत अच्छा लेख बिपिन जी. यह ठीक हुआ कि उन लड़कियों की असलियत खुल गयी. वर्ना वे जाने कितने लड़कों की इज्जत उतारकर ब्लैकमेल करती रहतीं.