कविता
तुम बन जाना कवि हमदम ,
मैं कविता बन जाऊँगी!
तुम बन जाना सागर हमदम,
मैं सरिता बन जाऊँगी!
तुम बन जाना दीपक हमदम,
मैं बाती बन जाऊँगी!
स्पर्श तुम जब करोगे हमदम,
मैं रोशन हो जाऊँगीं!
तुम बन जाना पवन हमदम,
मैं खुशबू बन जाऊँगीं!
पाकर साथ तुम्हारा हमदम,
चँहु और बिखर मैं जाऊँगी!
तुम बन जाना राग हमदम,
रागिनी मैं बन जाऊँगी!
मैं आशा उम्मीद हूँ सबकी,
खुद को कैसे बचाऊँगीं!
शब्द तुम्हारे बनकर हमदम.
मैं अधरों पे बिखर जाऊँगीं!
तुम खुद मैं गढ़ लेना हमदम,
मैं कविता बन जाऊँगीं!
ढ़लकर तुम्हारे सुरों मैं हमदम,
और निखर मैं जाऊँगीं!
नहीं रहेगा ड़र किसी का,
मैं तुम मैं ही बस जाऊँगीं!
तुम बन जाना कवि हमदम ,
मैं कविता बन जाऊँगीं!
…राधा श्रोत्रिय”आशा
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बहुत सुन्दर कविता !