कविता

तुम सुमन हो मै रहूँ सदा बन कर उसकी महक

हर पल मुझे महसूस होता है

तुम्हारी काल्पनिक उंगलियों का कोमल स्पर्श

लगता है –

मुझे पन्नो सा पलटकर

तुम पढ़ती हो सहर्ष

रुक जाती है जब मेरी कलम

तब तुम कहती हो –

इसे लिखो …यह है

इस कविता के लिये उपयुक्त शब्द

तुम्हारी और मेरी –

भावनाओं और विचारों के एकत्व

के पश्चात –

एक् दूसरे कों याद करते रहना ..

अब महत्वपूर्ण है हम दोनों के मध्य

तुम्हारे बिना मै चल नही पाता

एक भी कदम

फिर भी तुम कभी कभी कह देती हो ..

मुझसे –

“मुझे भूल भी जाओगे ..तो

आपके लेखन से मिली मानसिक संतुष्टी

मेरे लिये सात जनम तक ..न होगी कम

तब

मै कांप जता हूँ

भीतर ही भीतर डर ….

मै चाहता हूँ –

इस तरह से भूलने -भूलाने की बाते

मुझसे तुम

कभी न कहना ….चाहे फिर वह क्यों हो न स्वप्न

तुम सुमन हो मै रहूँ सदा बन कर उसकी महक

किशोर कुमार खोरेंद्र

किशोर कुमार खोरेंद्र

परिचय - किशोर कुमार खोरेन्द्र जन्म तारीख -०७-१०-१९५४ शिक्षा - बी ए व्यवसाय - भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवृत एक अधिकारी रूचि- भ्रमण करना ,दोस्त बनाना , काव्य लेखन उपलब्धियाँ - बालार्क नामक कविता संग्रह का सह संपादन और विभिन्न काव्य संकलन की पुस्तकों में कविताओं को शामिल किया गया है add - t-58 sect- 01 extn awanti vihar RAIPUR ,C.G.

One thought on “तुम सुमन हो मै रहूँ सदा बन कर उसकी महक

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छी भावनाएं.

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