सौन्दर्य पर मुग्ध थी
फूल जब तक रहा खिला
सुगंध उससे मुझे मिला
रंग में उसके दिन भर
मन मेरा उलझा रहा
मोहित कर गयी मुझे
उसकी कोमल पंखुरियाँ
कभी
गुनगुनाता हुआ आता
हैं मधुप
कभी
कलियों कों
चूम लेती हैं तितलियाँ
प्यार उनका निहारने
फुनगी पर
चुपचाप बैठी हैं
देखो एक ढीट चिड़ियाँ
पवन के झोंकों के विरुद्ध
संघर्ष करता हुआ
यह पुष्प ,वृंत पर
दृढ़ता से हैं रहा टिका
ठीक साँझ होने से पहेले
जड़ों के करीब
क्षत विक्षत मुझे वह दिखा
न फूल ,न उसकी पंखुरियाँ
न वे मधूप ,न वे तितलियाँ
न वह धूप ,न वह चिड़ियाँ
जान पाए कि…
कयों एकाएक…?
अश्रुपूरित हो गयी हैं
सौन्दर्य पर मुग्ध थी
जो ..मेरी अँखियाँ
किशोर कुमार खोरेंद्र
वाह वाह !