हमारे पिता
पिता हमारे बरगद जैसे,
देते सबको छाया।
जड़ें हैं इनकी इतनी गहरी,
दिशा दिशा फैलाया।
हर रिश्ता भाता है इनको,
करते हैं सबका पालन।
जो भी बुलाये प्यार से इनको,
पधारें हैं उनके आँगन।
लगते हैं ये नारियल जैसे,
पर अंदर से हैं निर्मल।
गुस्सा इनका देख सभी थर्राए,
प्यार ऐसा कि सब घुल-मिल जाएँ।
इनकी जितनी मेहनत,
हम क्या कर पाएँ।
दौड़-भाग इनकी है ऐसे
कि रास्ता भी घबराए।
इनका जीवन तो है
अति उच्च विचारों वाला।
करते हैं सबकी मदद,
कहते नेकी कर दरिया मे डाला।
मात-पिता का ये अपने,
करते सदा सादर सम्मान।
संताने भी हम इनकी
इनको कहते सदा महान।
करते सबकी परवाह,
भरें कभी न आह।
इनका एक अंश हमे जो मिल जाए।
जीवन हम सबका पूर्ण सफल हो जाये।
दिनेश “कुशभुवनपुरी”