कविता

चुभन

 

झरते हैं तो क्या हुआ
रोज तो खिलते है सुमन
काँटों को देखकर
महसूस न करों चुभन
मन बहता ही रहता है
गति ही है जीवन
हालाँ की यह सच नहीं है
फिर भी मान लो
क्षितिज पर
ज़मीं से मिल रहा है गगन
आती हुई लहर
जाती हुई लहर के क्र्म सा
है जनम और मरण
सपन सा लगता है जागरण
नींद में वही
जागरण बन जाता है सपन

किशोर कुमार खोरेंद्र

किशोर कुमार खोरेंद्र

परिचय - किशोर कुमार खोरेन्द्र जन्म तारीख -०७-१०-१९५४ शिक्षा - बी ए व्यवसाय - भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवृत एक अधिकारी रूचि- भ्रमण करना ,दोस्त बनाना , काव्य लेखन उपलब्धियाँ - बालार्क नामक कविता संग्रह का सह संपादन और विभिन्न काव्य संकलन की पुस्तकों में कविताओं को शामिल किया गया है add - t-58 sect- 01 extn awanti vihar RAIPUR ,C.G.

2 thoughts on “चुभन

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत अच्छी लगी .

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया !

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