कविता

तुम

 

तुम चाहे
दो न दो मेरा साथ
मै सदैव रहूंगा
तुम्हारे मन के पास

जब चाहे दिल तोड़ देना
जब चाहे फ़िर जोड़ लेना
मै आईने के कांच सा
बिछा हुआ
करता रहूँगा
तुम्हारा इन्तजार

कभी तुम खोयी सी
गुमसुम और उदास
कभी तुम प्रफुल्लित
और
दमकती हुई सी लगती हो ख़ास
तुम स्वतंत्र हो ,
तुम्हारे अपने है अधिकार

जब तुम कहोगी
तब
मांगूंगा मै तुमसे तुम्हारा हाथ
चाहे सदीयों लग जाए
तुम्हे मुझसे
यह कहने में
की—–
“मै भी करती हूँ तुमसे प्यार ”

मेरी चेतना का
तुम —-अमृत हो
डूबा रहता है कलम सा मन मेरा
तुम्हारे
ख्यालो की स्याही में सुबह शाम

बाह्य आडम्बर है दिनचर्या के काम
जैसे अपने बाहुपाश मे भर
सुरक्षित रखता है
मुझे
मेरा तन रूपी यह मकान
मेरी कल्पना के वीरान संसार में
तुम फूलो की बिखरी पंखुरियों सी
हो सुकुमार

शीतल जल के बहाव को
मेरे प्यासे मन की रेत पर रेखांकित
करने वाली जैसी तुम ही तो हो धार

शिखर से उतरती हुई
हे ..विचार मग्ना
तुम उदगम से चली
चिंतन-धारा हो तन्हा

या
खुबसूरत ,मनमोहक ,प्रकृति हो
तुम सोचती रहना….

पर मुझ कवि की भावुकता का
हे शाश्वत यौवना
मत करना उपहास

समझो हम दोनों है
एक दूजे के लिए
जीवित उपहार

मै सौन्दर्य का पुजारी
और तुम
प्रकृति …..!
करती हो
नित नूतन श्रृंगार

किशोर कुमार खोरेंद्र

किशोर कुमार खोरेंद्र

परिचय - किशोर कुमार खोरेन्द्र जन्म तारीख -०७-१०-१९५४ शिक्षा - बी ए व्यवसाय - भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवृत एक अधिकारी रूचि- भ्रमण करना ,दोस्त बनाना , काव्य लेखन उपलब्धियाँ - बालार्क नामक कविता संग्रह का सह संपादन और विभिन्न काव्य संकलन की पुस्तकों में कविताओं को शामिल किया गया है add - t-58 sect- 01 extn awanti vihar RAIPUR ,C.G.

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