उठ … छोड़ विलाप .. आगे बढ़ .. !!
भावों का सैलाब
जब उमड़ता है दिल में
बहा ले जाता है हमें
दर्द के संमदर में
याद आते हैं वो पल
जो छीन ले गये
कितना कुछ जिंदगीं से
और एकबार फिर
जब होता है शाँत
उमड़-घुमड़ कर
बेजान सा शरीर
सुन्न हुआ अंतर्मन
खुद को खुद ही दिलासा
तुम नये तो नहीं हो
जो गुजरे इस चक्रवात से
नियति के सामने भला
कहाँ कोई कुछ कर पाता है
फिर क्यूँ इतना रुदन
क्यूँ इतनी तड़प दिल में
उठो और पढ़ो गीता तुम
वहाँ साफ-२ लिखा है
न तुम कुछ लाये थे
न कुछ लेकर ही जाओगे
जो लिया यहीं से लिया
और जो दिया वो भी यहीं पर दिया
यही सच है छोड़ विलाप अब
और बढ़ आगे अपने जीवन पथ पर ……..
प्रवीन मलिक …..
बहुत प्रेरक कविता !
अच्छी कविता .