तुमसे दूर जाकर
तुम साथ होते हो ,
तो समय जैसे पंख लगाकर,
उड़ जाता है !
लगता है कुछ लम्हें ,
और चुरालूँ, या यहीं पर रोक लूँ ,
इस वक्त को !
पर जब तुमसे, दूर जाती हूँ,
लगता है,हर लम्हा अपना हिसाब,
खुद ही बयाँन, कर रहा है !
अजीब सा, सिलसिला है,
ये जिंदगी का,कभी वक्त नहीं,
कभी बेहिसाब वक्त !
तुम से दूर होते ही ,
तनहाई, शूल सी ,
चुभने लगती है मुझे!
वक्त के हाथ भी ,
बड़े बेरहम, लगते है मुझे !
काश कि तुम, हर पल ,
मेरे पास ही रहो !
तुम्हारी दूरी अब,
बरदाशत नहीं, होती है मुझसे !
बडी अजीब सी कशिश है,
तुम्हारी आँखों में,
जिससे रूह तक,
सिहर उठती हूँ में!
तुम्हारी चाहत ही, मेरा जुनून है,
ओर मेरे जीने का, मकसद भी!
कितनी भी, कोशिश करलूँ,
नाराज होने की तुमसे!
उतना ही प्यार,
तुम पर आ जाता है !
खुद से ही झगडती हूँ में,
सोचा था,इस बार ,
खूब सताऊँगी तुम्हें !
पर सजा में, भुगत रही हूँ,
मुझे खुद, नहीं पता
क्यूँ तुमसे, इतना प्यार ,
करती हूँ में !
तुम साथ होते हो ,
तो समय जैसे पंख लगाकर,
उड़ जाता है !
…राधा श्रोत्रिय”आशा
राधा जी , कविता बहुत अच्छी लगी .