धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

धर्म और सम्प्रदाय में क्या अंतर है?

स्वामी श्रद्धानन्द – धर्म और सम्प्रदाय में क्या अंतर है ?

संसार के सम्प्रदाय धर्म की रक्षा के लिए स्थापन किये गए थे , परन्तु आज वे ही सम्प्रदाय मूल धर्म को भूल कर गौण मतभेद के धर्म के वादानुवाद में लगे हुए हैं। जिस प्रकार शरीर को जीवित रखने के लिए अन्न-फल आदि के आहार की आवश्यकता हैं , इसी प्रकार आत्मिक जीवन की संरक्षा के लिए भी धर्म रुपी आत्मिक आहार की आवश्यकता होती हैं। शरीर रक्षा के लिए अन्न और फल मुख्य है, परन्तु उसी अन्न और फल  की रक्षा के लिए खेत वा वाटिका के इर्द-गिर्द बाड़ लगानी पड़ती हैं। कैसा मुर्ख वह इंसान हैं, जो अन्न-फल को भुलाकर अन्य किसानों की बाड़ो से ही अपनी बाड़ का मुलाबला कर उनका तिरस्कार करता हैं? इसी प्रकार जीवात्मा का आहार धर्म अर्थात प्रकृति के संसर्ग से छुट कर परमात्मा में स्वतंत्र रूप से विचरण मुख्य हैं। उसकी रक्षा के लिए जो सांप्रदायिक विधियां नियत की गई हैं, वे खेतों की बाड़ों के सदृश ही गौण हैं। कितना मुर्ख वह सांप्रदायिक पुरुष हैं, जो गौण नियमों के विवाद में फंसकर अपने मुख्य धर्म को भूल जाता हैं।

आचार परमो धर्म अर्थात धर्म की सबसे उत्तम परिभाषा आचार अर्थात आचरण को कहा गया हैं। इसलिए आचरण को पवित्र बनाने पर जोर दीजिये साम्प्रदायिकता पर नहीं।

(सन्दर्भ- राष्ट्रवादी दयानंद – लेखक सत्यदेव विद्यालंकार से साभार)

One thought on “धर्म और सम्प्रदाय में क्या अंतर है?

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    विवेक जी , लेख पड़ कर बहुत अच्छा लगा . धर्म एक जीने का रास्ता होता है लेकिन आज हम मेरा धर्म तेरा धर्म और कर्म कांडों में फंस कर रह गए हैं . यह साम्पर्दाएक दंगे कियों होते हैं ? सिर्फ इस लिए कि उस का धर्म नीच है , मेरा उतम है . सिख धर्म सिर्फ तकरीबन साढ़े पांच सौ वर्ष पुराना है लेकिन इस में भी इतने नए धर्म पैदा हो गए हैं कि सोच कर हैरानी होती है कि किया जो ओरिजनल सिख धर्म था उस से तसल्ली नहीं हुई ? कोई नया महात्मा आता है कोई नई बात शुरू कर देता है , लोग आने लगते हैं , फिर एक दिन वोह भी एक नया धर्म बन जाता है . बस हम इसी में फंस कर रह गए हैं .

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